Edited By Vikas Tiwari, Updated: 11 Jun, 2023 03:41 PM

कलेक्ट्रेट ऑफिस के बाहर कलेक्टर महोदय पानी दो - पानी दो के नारे लगा रही ये ग्रामीण महिलाएं मेंहदवानी जनपद पंचायत के पिण्डरूखी गांव की हैं, जो करीब 65 किलोमीटर का लंबा सफर तय करके कलेक्टर को जल संकट की समस्या बताने के लिए जिला मुख्यालय पहुंची हैं.
डिंडौरी (सुरेंद्र सिंह): मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य डिंडौरी जिले में दिनोंदिन जल संकट (water crisis) गहराता जा रहा है. आलम यह है की जिले के दर्जनों गांव में भीषण जलसंकट के हालात बन गए हैं. अधिकांश हैंडपंप पानी की जगह हवा उगल रहे हैं और जलस्तर गिरने की वजह से कई गांव में नलजल योजना बंद पड़े हुए हैं. ऐसे में ग्रामीण भीषण गर्मी में बूंद बूंद पानी के लिए तरसने को मजबूर हैं. खास बात यह है कि जो गांव जलसंकट से जूझ रहे हैं वो क्षेत्रीय सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के संसदीय क्षेत्र में आता है और सांसद और केंद्रीय मंत्री जी को पानी के विकराल समस्या की जानकारी भी है. लेकिन हालात सुधरने की बजाय बद से बदतर हो चले हैं.
कलेक्ट्रेट ऑफिस के बाहर कलेक्टर महोदय पानी दो - पानी दो के नारे लगा रही ये ग्रामीण महिलाएं मेंहदवानी जनपद पंचायत के पिण्डरूखी गांव की हैं, जो करीब 65 किलोमीटर का लंबा सफर तय करके कलेक्टर को जल संकट की समस्या बताने के लिए जिला मुख्यालय पहुंची हैं. कलेक्टर की जनसुनवाई में आने के लिए महिलाओं ने सौ सौ रूपये चंदा जुटाया था और अधिकारियों का ध्यानाकर्षण के लिए वे अपने सिर में खाली बर्तन रखकर कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंची थी.
पंजाब केसरी की टीम रियालिटी चेक करने आज जब पिण्डरूखी गांव पहुंची तो मालूम हुआ कि गांव में नलजल योजना पिछले 3 महीने से बंद है और ज्यादातर हैंडपंप भी पूरी तरह से सूख चुके हैं और जिन हैंडपंपों से पानी निकलता है वह पीने लायक नहीं है. ग्रामीण बताते हैं कि हैंडपंप के पानी से दुर्गंध आती है और इसी दूषित पानी के लिए हैंडपंप के पास सुबह से ही महिलाओं का हुजूम उमड़ पड़ता है और पानी भरने के लिए उनके बीच लड़ाई झगडे की स्थिति तक बन जाती है.
हैंडपंप के पास पानी भरने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार कर रही हेमवती सिंह ने बताया पानी की समस्या के कारण वो घर का कामकाज नहीं कर पाती है. क्योंकि उनका सारा वक्त पानी के इंतज़ार में ही कट जाता है, तो वही सरस्वती सिंह बताती हैं कि वो करीब 3 घंटे से हैंडपंप के पास बैठी है. लेकिन उसका नंबर नहीं आया है. सरस्वती मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करती है लेकिन पानी के चक्कर में वो काम पर नहीं जा पाती है. उमेश सिंह का कहना है कि उनके गांव में नलजल योजना दिखाने के लिए लगा दिया गया है. 3 महीने से नलजल बंद है, जिसकी शिकायत करते करते ग्रामीण थक गए हैं. लेकिन अब तक किसी भी ने उनकी सुध नहीं ली है.
जल संकट की दूसरी तस्वीर इलाके की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत मनेरी की है, जहां आजादी के सालों बाद भी नल जल योजना (nal jal yojna) नहीं पहुंच पाई है. गांव के तमाम जलस्रोत पूरी तरह से सूख गए हैं. ऐसे में ग्राम पंचायत के द्धारा टैंकर के माध्यम से पेयजल की आपूर्ति की जा रही है. पानी का टैंकर जैसे ही गांव में पहुंचता है लोग अपना सारा कामकाज छोड़कर टैंकर के पास जमा हो जाते हैं और पानी भरने के लिए उनके बीच मारामारी शुरू हो जाती है. गांव की बुजुर्ग महिला झन्नी बाई से पंजाब केसरी बात की तो उन्होंने नाराजगी जाहिर करते हुए बताया कि पानी के लिए हर रोज उन्हें ऐसे हालात का सामना करना पड़ता है, तो वही भारत भवेदी पानी की समस्या के लिए इलाके के सांसद और विधायक को कसूरवार बताते हुए उन्हें कोसते हुए नजर आ रहे हैं. ग्राम पंचायत की महिला सरपंच ने गांव में फैले जलसंकट के लिए जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदार अधिकारियों पर अनदेखी के आरोप लगाया हैं.
इलाके के कांग्रेस विधायक भूपेंद्र मरावी (bhupendra maravi) से जब हमने उनके विधानसभा क्षेत्र के दर्जनों गांव में भीषण जल संकट को लेकर सवाल किये तो उनका कहना है कि उनके क्षेत्र में पानी की विकराल समस्या है. उन्होंने जल संकट से जूझ रहे गांवों का नाम गिनाते हुए कहा कि विपक्ष का विधायक होने के नाते उनकी सुनवाई नहीं होती है. विधायक ने जल जीवन मिशन योजना पर भी सवाल खड़े किये हैं तो वही क्षेत्रीय सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते (Faggan Singh Kulaste) इस गंभीर समस्या पर गोलमोल बाते करते हुए अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए नजर आ रहे हैं.
पीएचई विभाग के कार्यपालन यंत्री शिवम सिन्हा जल संकट की वजह भौगोलिक स्थिति एवं जलस्तर गिरना बता रहे हैं. शिवम सिन्हा ने बताया कि जल संकट से जूझ रहे जिले के 16 गांव में टैंकर के जरिए पेयजल की आपूर्ति की जा रही है. वहीं जब उनसे जल जीवन मिशन को लेकर सवाल किया गया तो उनका दावा है की 90 गांवों में जल जीवन मिशन योजना के माध्यम से लोगों को पेयजल मुहैया कराया जा रहा है, जबकि जमीनी हकीकत दावों से बिलकुल परे है.