चौंसठ योगिनी मंदिर का भारतीय संसद से क्या है कनेक्शन, इतिहास में क्यों नहीं है इसका जिक्र!

Edited By Vikas kumar, Updated: 08 Dec, 2019 06:42 PM

design of indian parliament taken from this temple

देश में ऐसा कोई शख्स नहीं होगा, जो संसद न पहुंचना चाहता हो, पर बहुत कम लोग ही जानते होंगे की भारतीय संसद के भवन की डिजाइन मध्य प्रदेश में 9वीं शताब्दी के एक शिव मंदिर को देख...

मध्यप्रदेश डेस्क (विकास तिवारी): देश में ऐसा कोई शख्स नहीं होगा, जो संसद न पहुंचना चाहता हो, पर बहुत कम लोग ही जानते होंगे की भारतीय संसद के भवन की डिजाइन मध्य प्रदेश में 9वीं शताब्दी के एक शिव मंदिर को देखकर ली गई है। जो कि मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के वटेश्वर में स्थित है। अकसर जब भी भारतीय संसद की बात की जाती है तो एडविन लुटियंस का नाम ही सामने आता है। लेकिन एडविन लुटियंस ने संसद भवन बनाने की प्रेरणा जहां से ली उसका जिक्र कहीं नहीं होता। हर जगह संसद भवन बनने का श्रेय एडविन लुटियंस को ही दिया जाता है।

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कहां से ली गई संसद भवन की आकृति...
मध्यप्रदेश के मुरैना जिले से 40 किलोमीटर दूर मितावली में पहाड़ी में 300 फीट की ऊंचाई पर 64 योगिनी मंदिर स्थापित है। इसे इकोत्तरसो या इकंतेश्वर महादेव मंदिर भी कहा जाता है। इसे 9वीं सदी में प्रतिहार वंश के राजाओं ने बनवाया था।

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चंबल के बीहड़ों के बीच बना यह मंदिर कभी तांत्रिक अनुष्ठान की यूनिवर्सिटी हुआ करता था, जिसमें सिर्फ और सिर्फ तंत्र-मंत्र की शिक्षा दी जाती थी। आज से लगभग एक हजार साल पहले यहां देश-विदेश से कर्मकांड और तंत्र विद्या सीखने के लिए लोग आते थे।

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पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में कुल 64 कमरे और 101 खंबे हैं, हर कमरे में एक शिवलिंग के साथ योगिनी की प्रतिमा थी, इनमें से कुछ चोरी हो गईं, बाकी योगिनियां म्यूजियम में सुरक्षित रखी गई हैं।

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64 योगिनी मंदिर की डिजाइन से बना संसद का प्रारूप...
जब भारतीय संसद का निर्माण हुआ तो देश में ब्रिटिश हुकूमत थी। उस वक्त के ब्रिटिश शासकों ने संसद भवन के डिजाइन को लुटियंस की सोच माना, लेकिन इतिहासकारों की मानें तो इसकी पूरी डिजाइन मुरैना के मितावली की पहाड़ीयों पर स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर से ली गई है। लेकिन दुर्भाग्य है कि इतिहास में इसका कहीं भी कोई जिक्र नहीं है। हालात तो ये हो चले हैं कि देश की केंद्र सरकारों ने इस पुरानी बहुमूल्य संपदा को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया।

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कब शुरू हुआ संसद भवन का निर्माण
संसद भवन की नींव की पहली ईंट 12 फरवरी 1921 में रखी गयी थी, इसके निर्माण में 6 साल लगे थे और कुल 83 लाख रुपए का खर्च आया था, अंतत: 1927 में यह इमारत पूरी तरह से बनकर तैयार हो गई। उस समय इस सेंट्रल हाल कहा जाता था। इस विशालकाय भवन का निर्माता ब्रिटिश वास्तुविद सर एडविन लुटियंस और हरबर्ट बेकर को माना जाता है।

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यह विश्व के किसी भी देश में विद्यमान वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है जो कि देश की राजधानी दिल्ली में स्थित है। भारती संसद का व्यास 560 फुट और इसका घेरा 533 मीटर है। यह विशालकाय इमारत कुल 6 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है। भारतीय संसद भवन में कुल 12 दरवाजे हैं और हल्के पीले रंग के 144 खंभे हैं जिनकी ऊंचाई 27 फीट है।

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क्या है भारतीय संसद की खासियत...
देश में सबसे सस्ती कैंटीन भारतीय संसद में है। जहां महज 12 रुपए में खाना मिलता है। संसद में एक लाइब्रेरी भी है, जो कि देश की दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी है। कम ही लोग जानते हैं कि देश का सुप्रीम कोर्ट पहले संसद के सेंट्रल हॉल में था। आजादी के बाद भी सुप्रीम कोर्ट की नई बिल्डिंग बनने तक सेंट्रल हॉल में ही देश का सुप्रीम कोर्ट चलता था।

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संसद के दोनों सदन राज्यसभा और लोकसभा घोड़े के पैर की संरचना पर बने हैं। दोनों सदनों के हॉल का आकार घोड़े के पैर की तरह हैं। भारतीय संसद में राज्यसभा का पहला सत्र 13 मई 1952 को हुआ था। वहीं 1952 में ही पहले आम चुनाव होने के बाद देश को अपनी पहली लोक सभा मिली थी।

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