हाथ-पैर ने काम करने किया बंद, तो मुंह से पेंसिल पकड़कर पूरी की पढ़ाई, अब कॉम्पिटिशन की तैयारी से जागी नौकरी की आशा

Edited By Devendra Singh, Updated: 27 Nov, 2022 03:42 PM

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ग्वालियर के डबरा में किराये के मकान में रहने वाली होनहार छात्रा मंजेश पाल अपने हाथ पैरों से लाचार है। लेकिन उसके अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा है।

ग्वालियर (अंकुर जैन): इंसान में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो कितनी भी परेशानी क्यों ना आ जाए। वह कड़ी मेहनत के दम पर सफलता हासिल करने के लिए पूरी शिद्दत के साथ कोशिश करता है। ऐसी ही कहानी है डबरा (dabra) की रहने वाली मंजेश बघेल (manjesh baghel) की। महज 6 साल की उम्र में मंजेश (manjesh baghel datia) को गंभीर बीमारी ने घेर लिया और उसके दोनों हाथ और एक पैर ने काम करना बंद कर दिया। चलने में लाचार हाथों से काम करने में लाचार मंजेश ने हिम्मत नहीं हारी। वह स्कूल गई और स्कूलिंग पूरी के बाद कॉलेज में बीए की पढ़ाई पूरी की। अब वह B.ed प्रथम साल की पढ़ाई कर रही है। उसके साथ-साथ डबरा में कोचिंग भी जा रही है। ताकि शासकीय सेवा में जाने का उसका सपना पूरा हो सके। सबसे बड़ी बात यह है कि मंजेश मुंह में पेन दबाकर लिखती है और स्पीड भी ऐसी जैसे एक स्वस्थ गैर दिव्यांग छात्र अपने हाथों से लिखता है। 

प्रिंसिपल से मिले पेन से लिखने की प्रेरणा

ग्वालियर के डबरा में किराये के मकान में रहने वाली होनहार छात्रा मंजेश पाल अपने हाथ पैरों से लाचार है। लेकिन उसके अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा है। यही वजह है कि उसने अपने मुंह से पैन दबाकर लिखा और अपनी बीए की पढ़ाई कंप्लीट करने के बाद बीएड की तैयारी शुरू की। लेकिन पीड़ित छात्रा का दर्द जब झलका जब उसे किसी ने नौकरी नहीं दी। उसने बताया कि वह घर में सबसे बड़ी है। उसके परिवार की स्थिति ठीक नहीं है। पिताजी मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते हैं। लेकिन अब वह भी बीमारी के चलते लाचार हैं। यही कारण है कि अब मुझ पर घर की पूरी जिम्मेदारी का भार है। इसलिए मैंने नौकरी के लिए कई बार एप्लाई किया लेकिन हाथ पैर लाचार होने के कारण मुझे नौकरी नहीं मिली।

CM हाउस के गार्ड ने भगाया

जब में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (shivraj singh chouhan) से दतिया में मिली तो उन्होंने मुझे नौकरी देने का आश्वासन देकर भोपाल बुलाया और जब मैं भोपाल में उनके बंगले पर पहुंची तो उनकी सिक्योरिटी ने मुझे नहीं मिलने दिया और बंगले के बाहर से ही भगा दिया। उसके बाद मैं गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा (narottam mishra) से मिली तो उन्होंने भी मुझे ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद नौकरी का आश्वासन दिया था। लेकिन अब तक मुझे कोई मदद नहीं मिली है। 

सफलता के इंतजार में छात्रा 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां हर बेटा बेटी को भांजा और भांजी कहते हैं। लेकिन जब आपकी भांजी लाचार है, तो उसकी मदद करने कोई आगे नहीं आया। अब मैं अपनी पीड़ा किसे सुनाऊ, मुझे तो लगता है कि गरीब का कोई नहीं होता लेकिन इतना ज़रूर एक ना एक दिन मुझे सफलता ज़रूर मिलेगी और शासकीय सेवा में जाने का अपना सपना पूरा करूंगी। 

स्कूल के शिक्षक ने दी थी मुंह से लिखने की प्रेरणा

6 साल की उम्र में आकर मंजेश (manjesh baghel) के हाथ पैरों ने काम करना बंद किया था, तो वह अपनी हिम्मत खो चुकी थी। पिता मजदूरी करते थे, तो मां भी पैर से दिव्यांग है। सभी ने सोचा कि बच्ची स्कूल जाती थी, तो उसे स्कूल भेजा जाए। जब वह स्कूल गई तो उसकी हालत देखकर किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी कि वह पढ़ेगी लेकिन उस समय विसंगपुरा निवासी शिक्षक प्रेम नारायण छपरा शासकीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल में प्रिंसिपल हुआ करते थे, जिनका एक हाथ नहीं था। उन्होंने मंजेश से कहा कि बेटा हिम्मत नहीं हारना है। यदि प्रकृति ने अन्याय किया है तो हमें उससे लड़ना है। आप हाथों से नहीं मुंह से लिखने की कोशिश करो। प्रेम नारायण की बातों को मंजेश ने अपनी ताकत बनाया और मुंह से लिखना प्रारंभ किया और यह सिलसिला 15 वर्षों से लगातार जारी है और वह आज भी कंपटीशन एग्जाम की तैयारी कर रही है। मंजेश मुख्य रूप से दतिया जिले की निवासी है और डबरा में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही हैं।

कोचिंग में भी छात्र करते हैं मदद तो शिक्षक दे रहे हैं ध्यान

मंजेश बघेल डबरा में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कराने वाले रामनिवास सर की कोचिंग “आकार” में प्रतिदिन पढ़ने के लिए जा रही है। जहां इस तैयारी में जुटी है कि उसका शासकीय सेवा में जरूर चयन होगा। यदि बात करें तो कोचिंग की तो छात्राएं भी उसकी मदद करती हैं। मंजेश बारीकी से सब की सुनती है, तो पेज पलटने के लिए उसकी सहेलियां भी उसकी मदद करती हैं। सबसे बड़ी बात एक मंजिल ऊंचाई पर प्रतिदिन मंजेश चढ़ती है और उतरती है। बदहाल तंगी के हालात में हर दिन जैसे तैसे पैदल चल कोचिंग पहुंच रही है।

सब की मदद से बढ़ा छात्रा का हौसला 

वहीं शिक्षक रामनिवास का कहना है कि हमारा काम पढ़ाना है लेकिन जब कोई ऐसा छात्र आ जाए, जो परेशानियों से जूझ रहा हो। जब यह बच्ची मेरे पास आई तो देख कर लगा कि आज के समय जब युवा साधन संपन्न होने के बाद भी पढ़ाई नहीं कर पा रहे। ऐसे में हाथों से लाचार चलने में भी परेशानियों का सामना करने वाली मंजेश में कुछ करने का कुछ बनने का जज्बा है। इसलिए हम इसे पढ़ा रहे हैं। छात्र भी छात्राएं भी सब इसकी मदद कर रहे हैं। मेरे द्वारा भी पूरी मदद की जा रही है और इस पर ध्यान दिया जाता है। नोट्स आदि भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। एक ना एक दिन इसको सफलता जरूर मिलेगी। 

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