Edited By meena, Updated: 05 Sep, 2022 12:16 PM

कहते है शिक्षक का दर्जा भगवान से भी ऊपर होता है। आज शिक्षक दिवस पर हम आपको ऐसे ही शिक्षक से मिलवाने जा रहे हैं जिन्होंने अपने फर्ज को एक स्कूली नौकरी तक सीमित नहीं किया बल्कि सच में एक गुरु की भूमिका निभाई।
जबलपुर(विवेक तिवारी): कहते है शिक्षक का दर्जा भगवान से भी ऊपर होता है। आज शिक्षक दिवस पर हम आपको ऐसे ही शिक्षक से मिलवाने जा रहे हैं जिन्होंने अपने फर्ज को एक स्कूली नौकरी तक सीमित नहीं किया बल्कि सच में एक गुरु की भूमिका निभाई। जी हां हम बात कर रहे हैं जबलपुर के शहपुरा जनपद ग्राम पंचायत धरमपुरा की जहां शासकीय प्राथमिक शाला धरमपुरा में पदस्थ दिनेश कुमार मिश्रा ने कोरोना काल के दौरान वो कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। दिनेश कुमार ने कोरोना काल में जब बच्चे स्कूल नहीं आ सकते थे तो इन्होंने गरीब बच्चों को स्कूली शिक्षा देने के लिए पूरे गांव की पक्की दीवारों पर पहली से लेकर पांचवी तक के पाठ लिख कर पूरे गांव को ही स्कूल में तब्दील कर दिया गया था।
जिस प्रकार एक शिल्पकार पत्थर को आकार देता है और कच्ची मिट्टी को तपाकर उसके विकारों को दूर करता है ठीक उसी प्रकार एक शिक्षक भी छात्रों के अवगुणों को दूर कर काबिल बनाता है, ऐसे ही शिक्षक दिनेश कुमार मिश्रा है जिन्होंने गांव के गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए यह अनूठा तरीका निकाला हैं। जिससे गांव का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। इसके लिए मास्टर साहब ने पूरे गांव को ही स्कूल बना दिया हैं। आप सोच रहे होंगे कि आखिर पूरे गांव को स्कूल बनाना कैसे संभव है, लेकिन इस मुश्किल काम को भी शासकीय शिक्षक दिनेश कुमार मिश्रा ने मुमकिन किया है। जबलपुर से 40 किमी दूर बसे धरमपुरा गांव की हर दीवार शिक्षा के सुनहरे अक्षरों से भरी हुई है। शिक्षक दिनेश कुमार मिश्रा की इस नेक पहल से गांव के ग्रामीणों के साथ ही आते जाते बच्चे दीवारों पर कभी भी किसी भी समय पढ़ते नजर आते है। गांव के ग्रामीणों के साथ बच्चे भी अपने इस अनोखे शिक्षक की खूब सराहना करते है।
इस कारनामे के बाद शिक्षक दिनेश कुमार मिश्रा का कहना है कि बच्चों की पढ़ाई का नुकसान न हो यही सोचकर मोहल्ला क्लासेस की हमने शुरुआत की थी क्योकि गांव में ज्यादातर आबादी मजदूर वर्ग की है और मजदूरों के बच्चे अपने माता-पिता के साथ काम पर चले जाते थे जिसके चलते वे पढ़ने के लिए एक साथ एक जगह पर नहीं आ पाते थे जिसको देखते हुए हमने गांव की तंग गलियों को क्लासरूम और दीवारों को ब्लैकबोर्ड बनाने के बारे में सोचा और जब इसके लिए गांव वालों से बात की तो सभी लोगों ने अपने पक्के मकान की एक एक दीवार स्कूल के लिए दान कर दी। इसके बाद हमने गांव की हर दीवार को शिक्षाप्रद बनाने के लिए अक्षर ज्ञान व गणित के जोड़-घटाने के समीकरणों को लिख दिया जिन दीवारों पर लिखी उनकी ज्ञान की इबारत कोरोना काल के बाद आज तक गांव वालों के साथ बच्चों को पढ़ाई करने में मदद कर रही है जिसका असर स्कूल खुलने के बाद स्कूल में आने वाले बच्चो में दिखाई दे रहा है क्योकि वे अब हिंदी के साथ इंग्लिश में भी हर प्रश्न का उत्तर देते नजर आ रहे।
शिक्षक दिनेश कुमार मिश्रा की इस अनूठी पहल ने न सिर्फ बच्चों को बल्कि उनके माता पिता को भी शिक्षा की अहमियत को समझाया हैं। इनकी नेक सोच और जिद ने साधारण दीवारों को अपने ज्ञान से भर दिया है औऱ यही वजह है कि आज ग्राम पंचायत धरमपुरा के इस गांव में रहने वालों में आज भी ज्ञान का उजियारा फैल रहा है।