Edited By Vikas Tiwari, Updated: 27 Oct, 2025 04:54 PM

मध्यप्रदेश में बिजली वितरण प्रणाली में "सुधार" के नाम पर सरकार निजी कंपनियों को बिजली वितरण का जिम्मा सौंपने की तैयारी कर रही है। नई व्यवस्था के तहत बिजली के पोल, मीटर और तार तो सरकारी कंपनियों के रहेंगे, लेकिन बिल वसूली और वितरण का संचालन निजी...
भोपाल: मध्यप्रदेश में बिजली वितरण प्रणाली में "सुधार" के नाम पर सरकार निजी कंपनियों को बिजली वितरण का जिम्मा सौंपने की तैयारी कर रही है। नई व्यवस्था के तहत बिजली के पोल, मीटर और तार तो सरकारी कंपनियों के रहेंगे, लेकिन बिल वसूली और वितरण का संचालन निजी हाथों में दिया जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम सरकारी वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है और आम उपभोक्ताओं के लिए बिजली को महंगा बना देगा।
केंद्र सरकार बिजली अधिनियम में करेगी संशोधन
केंद्र सरकार बिजली अधिनियम 2003 में संशोधन की प्रक्रिया में है, जिससे राज्यों में निजी कंपनियों की भागीदारी का रास्ता खुल जाएगा। इस बदलाव को लेकर राज्यों से सुझाव मांगे गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सरकारी विभाग समय पर बिजली बिल चुकाएं, सब्सिडी का भुगतान नियमित रूप से हो और बिजली चोरी पर लगाम लगे, तो निजी कंपनियों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
पूर्व अभियंता ने जताई चिंता
रिटायर्ड अतिरिक्त मुख्य अभियंता (पावर जनरेशन) राजेंद्र अग्रवाल ने कहा, “निजी कंपनियां शुरुआत में सस्ती दरों से उपभोक्ताओं को लुभाएंगी, लेकिन धीरे-धीरे दाम बढ़ाकर भारी बिल थोपेंगी। इससे सरकारी कर्मचारियों और कंपनियों का भविष्य संकट में पड़ जाएगा, साथ ही हादसों और कानूनी विवादों का खतरा भी बढ़ेगा।”
मध्यप्रदेश में पहले भी असफल रहा निजीकरण
प्रदेश के सागर और उज्जैन में पहले भी निजी कंपनी (गोयनका ग्रुप) को वितरण का काम सौंपा गया था, लेकिन कंपनी वसूली करने के बाद गायब हो गई। नुकसान की भरपाई सरकार को करनी पड़ी थी। वहीं दिल्ली, मुंबई, गोवा, चंडीगढ़ और पांडिचेरी में पहले से निजी कंपनियां बिजली वितरण कर रही हैं, जहां दरें 10 से 12 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच चुकी हैं।
‘विकल्प’ के नाम पर उपभोक्ताओं से छल?
सरकार और निजी कंपनियां इस योजना को उपभोक्ता के "विकल्प" के रूप में पेश कर रही हैं, यानी उपभोक्ता जहां से चाहे बिजली खरीद सकेगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि शुरुआत में कंपनियां सस्ती बिजली देकर भरोसा जीतेंगी और बाद में रेट बढ़ाकर उपभोक्ताओं पर बोझ डालेंगी। इसका सबसे ज्यादा असर मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों पर पड़ेगा।