Edited By Devendra Singh, Updated: 11 Sep, 2022 05:27 PM
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (dwarka peeth shankaracharya swami swaroopanand saraswati) का निधन हो गया है।
नरसिंहपुर (रोहित अरोरा): द्वारिका एवं ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (dwarka peeth shankaracharya swami swaroopanand saraswati) का निधन हो गया है। नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में उन्होंने अंतिम सांस ली। शंकराचार्य 99 साल की उम्र में परलोग सिधार गए। शंकराचार्य की मौत की खबर के साथ उनके शिष्यों में शोक की लहर दौड़ गई है। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म २ सितम्बर १९२४ को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
माता-पिता ने रखा था पोथीराम
माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। लेकिन 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थी। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। जब १९४२ में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और १९ साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी। वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे।
१९८१ में मिली शंकराचार्य की उपाधि
१९५० में वे दंडी संन्यासी बनाये गए और १९८१ में शंकराचार्य की उपाधि मिली। १९५० में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।