Edited By Vikas Tiwari, Updated: 09 Mar, 2023 06:04 PM

कानड़ में रंगों के त्यौहार पर सालों पुरानी परंपरा को जीवित ऱखकर सौहार्द का संदेश दे रहे है। होली (holi) के दूसरे रोज किलकी गैर के सदस्य गोंदी चौराहे से होली के गीतों के साथ निशान लेकर निकलते हैं।
आगर मालवा (सय्यद जाफर हुसैन): आगर मालवा जिले के कानड़ में रंगों के त्यौहार पर सालों पुरानी परंपरा को जीवित ऱखकर सौहार्द का संदेश दे रहे है। होली (holi) के दूसरे रोज किलकी गैर के सदस्य गोंदी चौराहे से होली के गीतों के साथ निशान लेकर निकलते हैं। जो पीपल चोक तक तक जाकर वाह से वापस सदर बाज़ार शिवडेरा मंदिर होते हुए हज़रत पहलवान शाह दाता के आस्ताने पर पंहुचकर निशान, गेरा (ढबली), झान को रखकर अगरबत्ती, लुभान लगाकर अमन चैन की (दुआ) प्रार्थना करते हैं कि हरा नीला पीला सब रंगों की तरह मिलजुलकर रहे।
किलकी गैर के सदस्यों ने बताया कि 2 निशान में एक बाबा साहब का निशान होता हैं, तो दूसरा निशान हनुमान जी का होता हैं। दोनों निशान को पहलवान शाहदाता के अस्ताने पर रखने के बाद गोंदी चौराहे पर तेरस तक लगा देते हैं। यह सिलसिला बहुत सालों पुराना हैं। किलकी गैर के सदस्यों ने बताया कि पहले किलकी गैर, तुर्रा गैर होती थी। इसके अलावा टुंडा गैर भी होती थी। जो किलकी गैर गोंदी चोराहे से चलती थी। तो तुर्रा गैर राजवाड़ा से चलकर पीपल चौक आने के बाद किलकी गैर तुर्रा गैर में होली के गीतों को लेकर प्रतिस्पर्धा होती दोनों में जब एक गैर थक जाती तो टुंडा बीच मे आकर मदद करता ऐसे सिलसिला चलता रहा लेकिन अब सिर्फ यह परंपरा किलकी गैर निभा रही हैं।
लुप्त होती परंपरा को किलकी गेर के सदस्यों ने जीवित ऱखकर नगर में शादी, नवजात के जन्म होने पर परिवार के द्वारा बुलाने पर गाते बाजते उनके घर जाकर उनकी खुशियों को दोगुना करते हैं। परिवार द्वारा उनके सम्मान में स्वल्पाहार कराकर खुशी महसूस करते है। जहां देश में हिन्दू मुसलमान (hindu-muslim) कर दूरी बढ़ाने के प्रयास किया जा रहा हैं। ऐसे समय मे किलकी गैर के सदस्यों द्वारा होली के दूसरे रोज निशाना लेकर पहलवान शाहदाता के अस्ताने पर जाते यह उनके लिए मुंह तोड़ जवाब हैं, जो हिन्दू मुसलमान करते हैं।