Edited By Himansh sharma, Updated: 19 Dec, 2025 10:28 AM

पुलिस… जिसे समाज का रक्षक कहा जाता है। लेकिन सवाल यह है कि अगर रक्षक ही शारीरिक रूप से कमजोर, बीमार और अनफिट हों, तो वे आम जनता की सुरक्षा कैसे कर पाएंगे?
दुर्ग। (हेमंत पाल): पुलिस… जिसे समाज का रक्षक कहा जाता है। लेकिन सवाल यह है कि अगर रक्षक ही शारीरिक रूप से कमजोर, बीमार और अनफिट हों, तो वे आम जनता की सुरक्षा कैसे कर पाएंगे? छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला में बड़ी संख्या में ऐसे पुलिसकर्मी नजर आ रहे हैं जिनका पेट बाहर निकला हुआ है, शरीर भारी हो चुका है और फुर्ती कहीं न कहीं गायब दिखती है। हाईवे जैसी काया और कमजोर स्टैमिना के साथ अपराधियों से मुकाबला करना आसान नहीं होता। यही वजह है कि अब पुलिस विभाग की फिटनेस पर गंभीर सवाल खड़े होने लगे हैं।
बीमारियों से जूझते रक्षक
जिले में कई पुलिसकर्मी ऐसे भी हैं जो डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, मोटापा, सांस की बीमारी जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि कुछ जवान ठीक से बोल नहीं पाते, तो कुछ चलने में भी परेशानी महसूस करते हैं। ड्यूटी के दौरान उनकी हालत देखकर आम लोग भी हैरान रह जाते हैं।
इलाज और सुविधा की दरकार
विशेषज्ञों का मानना है कि पुलिस विभाग को चाहिए कि ऐसे पुलिसकर्मियों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण कराए और समय रहते उनका इलाज सुनिश्चित करे। कई जवान परिवार और लगातार ड्यूटी के दबाव के कारण अपनी सेहत पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। नाइट ड्यूटी, तनाव, अनियमित खान-पान और आराम की कमी ने उनकी सेहत को और बिगाड़ दिया है।
समाधान क्या है?
अनफिट पुलिसकर्मियों को फिटनेस कैंप और योग-व्यायाम ट्रेनिंग से जोड़ा जाए हर जिले में पुलिस हेल्थ चेकअप यूनिट बनाई जाए
बीमार जवानों के लिए विशेष मेडिकल सुविधा और काउंसलिंग उपलब्ध कराई जाए फिट पुलिसकर्मियों को प्रोत्साहन और सम्मान दिया जाए।
पुलिस की वर्दी सिर्फ पहचान नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है। जब तक पुलिसकर्मी खुद स्वस्थ और फिट नहीं होंगे, तब तक वे पूरी ताकत से समाज की रक्षा नहीं कर पाएंगे। दुर्ग जिले में अब वक्त आ गया है कि फिटनेस को केवल आदेश नहीं, बल्कि अभियान बनाया जाए ताकि रक्षक खुद सुरक्षित रहें और जनता भी।