2012 में मौत को करीब से देखा था SP अमित सिंह ने, पंजाब केसरी से साझा की यादें

Edited By meena, Updated: 17 Jun, 2020 03:25 PM

sp amit singh shared his memories with punjab kesari

किसी भी आईपीएस ऑफिसर को अपने कार्यकाल में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनको अपराध के खात्मे के साथ कई बार प्रकृति से भी जंग लड़नी पड़ती है। तब अफसर के साहस की सही परीक्षा होती है। 2009 बैच के आईपीएस ऑफिसर अमित सिंह ने उस चुनौती का सामना...

जबलपुर(विवेक तिवारी): किसी भी आईपीएस ऑफिसर को अपने कार्यकाल में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनको अपराध के खात्मे के साथ कई बार प्रकृति से भी जंग लड़नी पड़ती है। तब अफसर के साहस की सही परीक्षा होती है। 2009 बैच के आईपीएस ऑफिसर अमित सिंह ने उस चुनौती का सामना भी ऐसे वक्त किया, जब उनको इस सेवा में आए सिर्फ 4 साल हुए थे। शिवपुरी के करैरा में वे sdop के पद पर थे, तभी 8 अगस्त को उनका प्रमोशन एएसपी के रूप में हुआ और उसी दिन शिवपुरी के एस पी अवकाश में चले गए। लिहाजा एस पी का चार्ज भी अमित सिंह को मिल गया और उसी दिन अमित सिंह का सामना सब से बड़ी चुनौती से हुआ।

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एसपी अमित सिंह ने पंजाब केसरी से बातचीत करते हुए उस दिन की घटना के बारे में बताया जो किसी भी अफसर के साहस की सब से बड़ी चुनौती होती लेकिन यहां भी उन्होंने वो परीक्षा पास की। 8 अगस्त 2012 आसपुर उमरी गांव के पास शुक्रवार शनिवार की मध्यरात्रि ग्वालियर से खोड़ की ओर जाने वाली यात्री बस उफान लेती महुअर नदी के रपटे में फस गई। जन्माष्टमी का दिन था ठीक वैसे ही बारिश हो रही थी जैसे कभी जन्माष्टमी में भगवान श्री कृष्ण के जन्म के वक्त हुई थी बस का अगला टायर रपटे में बनी मुंडी में फस गया। बस यही से जिंदगी और मौत के बीच की लड़ाई शुरू हो गई जिसने भी यह दृश्य देखा उसकी आंखें फटी की फटी रह गई।

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13 जान मुसीबत में थी धीरे-धीरे बस में पानी भरता जा रहा था। सुबह से ही जिले में बारिश हो रही थी अमित सिंह को कहीं ना कहीं यह अंदाजा था कि भारी बारिश के चलते नदी नाले उफान पर आएंगे लिहाजा वो शाम को 5:00 बजे ही सेट पर सभी थाना प्रभारियों को आगाह कर चुके थे कि आप सभी टायर रस्सी और बाढ़ में सुरक्षा के इंतजाम जो भी हो सकते हैं गाड़ियों में रख के ही निकले शायद यही अफसर की दूरदर्शिता होती है जो आने वाले संकट को भी भाप जाती है। 8 बजे रात को इस घटना की सूचना मिलती है कि महुअर नदी के रपटे पर एक बस फस गई है।

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सूचना के तत्काल बाद अमित सिंह वहां पहुंच जाते हैं आसपास नजरें दौड़ाते हैं बीचो बीच बस फंसी हुई है लेकिन 13 लोगों को बचाएं तो बचाए कैसे। बस में पानी भरता जा रहा था। सभी यात्री चिंता में थे। पहले बस के पहिए डूबे उसके बाद पानी खिड़कियों तक पहुंच गया और अगर खिड़कियों से पानी अंदर जाता तो बेहद मुश्किल हो जाता है। ऐसे में मौके पर मौजूद अमित सिंह ने उनको बचाने का नुस्खा निकाला जो तत्काल के समय पर बेहद जरूरी हो गया था। क्योंकि बस तो फंसी हुई थी पानी बढ़ रहा था और राहत के लिए अभी भी कोई टीम नही पहुंची थी। हालांकि आईटीबीपी के जवानों को सूचना दे दी गई लेकिन जब तक वो न आते तब तक ये 13 जान कैसे बचती लिहाजा वर्तमान के संसाधन से बस में फंसे यात्रियों को बचाने का प्रयास अमित सिंह ने शुरू कर दिया, उन्होंने पीए सिस्टम से लोगों को कहा आप लोग खिड़की के कांच तोड़ दीजिए।

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आप लोग बस के ऊपर कैरियर में चढ़ जाइए जिससे कि पानी अगर बस में घुसेगा तो आप सुरक्षित रहेंगे। ठीक वैसा ही हुआ अमित सिंह की बातों को मानकर उन्होंने साहस का परिचय दिया और वे कांच तोड़कर कैरियर पर सवार हो गए। अब सवाल यही था कि जो 13 लोग हैं उनको निकाला तो निकाला कैसे जाए जो साधारण रस्सी थी उससे काम बन नहीं सकता था। रस्सी ऐसी चाहिए थी जिसके सहारे पुलिस जवान वहां तक पहुंच पाते। तो दूसरी तरफ ये भी टास्क था कि बस को बहने से कैसे रोका जाए क्योंकि बहाव बेहद तेज़ हो चुका था ऐसे में एक आईपीएस ऑफिसर की बुद्धि काम करना शुरू कर चुकी थी। उनको पता था कि हमें ऐसी रस्सी का उपयोग करना है जिससे कि इन सब की जान बचे ऐसे में अमित सिंह ने मछली पकड़ने के कांटे को किसी तरह से बस तक पहुंचाने की कोशिश की।

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मछली पकड़ने का कांटा बेहद मजबूत होता है और जिस तरह से पानी बढ़ रहा था उस से बस बह सकती थी जिसके बाद ऑपरेशन असफल हो जाता। ऐसे में बस को रोकना बेहद जरूरी था। पानी के बढ़ने के साथ-साथ बहाव तेज़ होता जा रहा था। बस किसी भी वक्त नीचे पानी के तेज बहाव में गिर सकती थी। ऐसे में बस को उसी मजबूत मछली के कांटे की सहायता से बांधा गया। आस पास मौजूद गांव वालों ने उस रस्सी का इंतजाम किया और तब राहत की उम्मीद जागी। 1 बजे तक आइटीबीपी के जवान और सीआरपीएफ के जवान भी मौके पर पहुंच गए उसके बाद ऑपरेशन और तेज किया गया रस्सा बांधकर जब बस तक पहुंचने का प्रयास किया गया तो बीच में रस्सी भी टूट गई किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि बस की छत तक कैसे पहुंचे लेकिन कहते हैं ना नियत अच्छी हो तो सफलता जरूर मिलती है।

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अमित सिंह तेज़ बहाव के बीच उस रस्सी को ले कर पहुंचे बस को उस रस्सी से बांधा गया और फिर पेड़ के सहारे उसके दूसरे छोर बांधा गया। आखिर में ऑपरेशन सफल हुआ और इस ऑपरेशन को लीड कर रहे थे एसपी अमित सिंह वे खुद पानी के तेज बहाव के बीच प्रवेश कर गए थे। खुद रस्सी के सहारे लोगों को निकाल रहे थे, जिसने भी यह देखा उन्होंने यही कहा ये भगवान के रूप में हमे बचाने आए, इस तरह सभी यात्रियों को अमित सिंह ने बाहर निकाला और सब की जान बचा ली।। 8 अगस्त को आज भी अमित सिंह को आता है कॉल एसपी अमित सिंह ने बताया कि 8 अगस्त की वह घटना मेरे जहन में आज भी जीवित है।

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उस घटना के बाद उन 13 लोगों के कॉल आते हैं और मुझे धन्यवाद देते हैं। जाहिर तौर पर किसी की रक्षा करना सबसे बड़ा कर्तव्य होता है। मैंने भी उस वक्त यही किया था परिस्थितियां विषम थी लेकिन मैंने साहस का परिचय दिया मैंने आसपास के जो भी संसाधन मौजूद थे उन्हें के जरिए लोगों की जान बचाई हमें कभी भी, किन्ही परिस्थितियों पर हार नहीं मानना चाहिए। यही मैंने सीखा था और उसी बलबूते पर मैंने इस ऑपरेशन को सफल बनाया। वह मेरे जिंदगी का यादगार पल था जब वो 13 लोग बचकर किनारे आ गए।

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उनकी आंखों में जो खुशी के आंसू देखे मेरे मन एक संतुष्टि के भाव आये कि आज भगवान ने मुझे वह साहस दिया जिसके चलते मैंने यह सब कुछ किया। नवोदित अफसरों को भी में यही कहना चाहता हूं किन्हीं भी परिस्थितियों पर हमें हार नहीं मानना चाहिए हालांकि यह फार्मूला सिर्फ अफसरों पर नहीं बल्कि सभी पर लागू होता है। हालात विपरीत कितने भी हो लेकिन जंग लड़ना ही चाहिए क्योंकि जब तक हम लड़ेंगे नहीं तब तक जीतेंगे भी नहीं। लिहाजा इसी वाक्य के साथ मैं आगे बढ़ रहा हूं।

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