Bhopal Gas Tragedy: तबाही के 13 दिन बाद दोबारा शुरू हुआ था कंपनी में काम, ये थी वजह?

Edited By Vikas Tiwari, Updated: 03 Dec, 2021 12:32 PM

bhopal gas tragedy company was restarted 13 days after the catastrophe

2-3 दिसंबर की रात 10.30 बजे भोपाल के लोग जब चैन से सो रहे थे, तो इसी बीच यूनियन कार्बाइड कंपनी से लीक हुई मिथाइल आइसोसाइनाइड गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दी। दूसरी दिन 3 दिसंबर की सुबह भोपाल में लाशों का अंबार लगा था और मौत का ये सिलसिला...

मध्यप्रदेश डेस्क(विकास तिवारी): 2-3 दिसंबर की रात 10.30 बजे भोपाल के लोग जब चैन से सो रहे थे, तो इसी बीच यूनियन कार्बाइड कंपनी से लीक हुई मिथाइल आइसोसाइनाइड गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दी। दूसरी दिन 3 दिसंबर की सुबह भोपाल में लाशों का अंबार लगा था और मौत का ये सिलसिला करीब 3 दिन तक लगातार चलता रहा। ये भयावह मंजर देखकर सभी लोग बुरी तरह सहम गए थे। इस कंपनी में जो गैस लीक हुई थी वो E610 से हुई थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दो बाकि के दो टैंक थे E611, और E619... जिनमें गैस पूरी तरह भरी हुई थी, और अब कंपनी के ऊपर इस गैस को भी खत्म करने का दबाव था, लेकिन कंपनी इस डर में थी कि इस गैस को खत्म करते वक्त अगर फिर कोई टैंक लीक हुआ तो पूरा भोपाल खत्म हो जाएगा।

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यही है टैंक E610... जिससे लीक हुई थी जहरीली गैस
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दोबारा शुरू हुआ यूनियन कार्बाइड कंपनी में प्रोडक्शन...
महातबाही के 13 दिन बाद रिस्क लेते हुए दोबारा यूनियन कार्बाइड कंपनी में प्रोडक्शन शुरू किया गया। इस उम्मीद के साथ कि बाकि बची हुई जहरीली MIC गैस को पूरी तरह से खत्म किया जा सके। क्योंकि खतरा अब भी मंडरा रहा था। लेकिन बड़ी समस्या तब आई जब यह खबर वहां जिंदा बचे लोगों को लग गई कि दोबारा इस कंपनी में काम शुरू हो रहा है। ये सुनते ही वहां बचे बाकि लोग भोपाल छोड़कर भागने लगे, पूरा भोपाल वीरान हो गया था। लेकिन इस बार कंपनी प्रबंधन ने पूरी तैयारी की। कंपनी में प्लांट चालू होने से पहले चारों ओर बाउंड्री वाल के ऊपर कपड़े की दीवार लगाई गई और उसी गीला कर दिया गया। ताकि अगर गैस लीक हो तो पानी से उसे दबाया जा सके। इस बीच वहां पर पानी की बौछार के लिए कई फायर ब्रिगेड भी मौजूद थीं।

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आखिरकार खत्म हुआ भोपालवासियों पर आने वाला दूसरा बड़ा खतरा...
13 दिन बाद कंपनी ने जोखिम उठाते हुए काम शुरू कर दिया। सात दिन तक इस कंपनी में लगातार काम चलता रहा। इस बीच टैंक E611, और E619 में बची MIC को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया, और भोपाल वालों को आने वाले दूसरे बड़े खतरे से हमेशा-हमेशा के लिए निजात मिल गई। वो तीनों टैंक जिनमें MIC मौजूद थी, ये आज भी इस कंपनी में मौजूद हैं, दो टैंक तो अपनी ही जगह पर हैं लेकिन टैंक E610 अपनी जगह से थोड़ा दूर पर पड़ा है। पूरी कंपनी में जंग लगी हुई है, लेकिन आज भी जो इस कंपनी को देखता है तो उसकी आंखों के सामने 2-3 दिसंबर 1984 की रात हुआ मंजर दिखाई देने लगता है।

 

 

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