IIFA सरकार के नाकारापन, वादाखिलाफी और दलित व आदिवासियों पर बढते अत्याचारों का जश्न: गोपाल भार्गव

Edited By Jagdev Singh, Updated: 04 Feb, 2020 12:52 PM

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आईफा अवार्ड समारोह के आयोजन को लेकर मध्यप्रदेश में राजनीति शुरू हो गई है। एक तरफ जहां कांग्रेस कह रही है आईफा के आयोजन से प्रदेश की ब्रांडिग होगी और भविष्य में नए विकल्प खुलेंगे। वहीं बीजेपी ने कमलनाथ सरकार पर हमला बोला है। नेता प्रतिपक्ष गोपाल...

भोपाल: आईफा अवार्ड समारोह के आयोजन को लेकर मध्यप्रदेश में राजनीति शुरू हो गई है। एक तरफ जहां कांग्रेस कह रही है आईफा के आयोजन से प्रदेश की ब्रांडिग होगी और भविष्य में नए विकल्प खुलेंगे। वहीं बीजेपी ने कमलनाथ सरकार पर हमला बोला है। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा कि सरकार फिजूलखर्ची कर रही है।

मध्य प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा कि आईफा अवार्ड मध्यप्रदेश कांग्रेस सरकार के निकम्मेपन, नाकारापन और वादाखिलाफी का जश्न है। मध्यप्रदेश की धरती पर दलितों आदिवासियों पर अत्याचार हो रहे हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं। बेरोजगार युवा हताश और अवसाद के शिकार हैं। खाली खजाने का हवाला देकर कमलनाथ सरकार गरीबों की योजनाओं को बंद कर रही है। वहीं दूसरी ओर आईफा अवार्ड के नाम पर सरकार अपनी वाहवाही में लगी हुई है। यह आईफा अवार्ड प्रदेश की जनता के पैसों से कमलनाथ सरकार के नाकारापन, वादाखिलाफी और दलित और आदिवासियों पर बढते अत्याचारों का जश्न है। गरीबों की चिंता करने की बजाय कमलनाथ सरकार फिल्म स्टारों की आवभगत में लगेगी। प्रदेश की जनता हलाकान और नाचने गाने वाले सरकारी मेहमान बनेंगे।

सरकार में बैठे लोगों को आईफा अवार्ड जैसे नाच गाने का शौक है, तो बड़े शहरों में जाकर अपने पैसों से अपने शौक पूरे करें। जनता की गाढ़ी कमाई ऐसे आयोजनों पर खर्च करना जनता का अपमान है। जिसे प्रदेश की जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। एक तरफ कमलनाथ सरकार तत्कालीन भाजपा सरकार पर दोषारोपण करती है कि खजाना खाली छोड़ा है। लेकिन फिजूल खर्ची के लिए कांग्रेस सरकार के पास पैसा कहां से आ रहा है। आईफा अवार्ड पर करीब 58 करोड़ से अधिक राशि खर्च करने जा रही। इसकी तैयारियों के लिए सरकारी मशीनरी को लगाया गया है।

गोपाल भार्गव ने कहा कि प्रदेश सरकार एक साल बाद भी किसानों का कर्जमाफ नहीं कर सकी है। सरकार ने वृद्धजनों के लिए जिलों की निराश्रित निधि के 750 करोड भी अन्यत्र खर्च कर दी। हड़ताल पर बैठे अतिथि विद्वानों को नौकरी से निकाला जा रहा है और सरकार का यह तर्क की आईफा से रोजगार बढेगा हास्यास्पद है।

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