Edited By Vikas kumar, Updated: 26 Sep, 2019 02:08 PM
मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के देपालपुर विकासखंड के गिरोटा गांव के सरकारी स्कूल का चपरासी पिछले 23 सालों से बच्चों को संस्कृत पढ़ा रहा है। 53 साल का वासुदेव पांचाल न तो संस्कृत टीचर और न ही इस काम के लिए उसे अतिरिक्त वेतन मिलता है..
इंदौर: मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के देपालपुर विकासखंड के गिरोटा गांव के सरकारी स्कूल का चपरासी पिछले 23 सालों से बच्चों को संस्कृत पढ़ा रहा है। 53 साल का वासुदेव पांचाल न तो संस्कृत टीचर और न ही इस काम के लिए उसे अतिरिक्त वेतन मिलता है। इन सब के बावजूद वासुदेव बच्चों को पढ़ाने का काम बखूबी से कर रहा है।
पहले साफ-सफाई उसके बाद पढ़ाई
इस बारे में वासुदेव खुद बताते हैं कि मैं सुबह आकर सबसे पहले स्कूल में झाडू लगाता हूं। फर्श, फर्नीचर साफ करता हूं। पीने के लिए पानी भरने सहित सारे काम निपटा लेता हूं। मैं चाहता हूं कि बच्चे संस्कृत पढ़े क्योंकि ये हमारे देश की संस्कृति का हिस्सा है। साफ-सफाई करने के बाद वह बच्चों को संस्कृत पढ़ाने के लिए क्लासरुम में आते हैं।
स्कूल में 175 छात्र, तीन शिक्षक
वासुदेव पिछले 23 सालों से ऐसा कर रहे हैं क्योंकि स्कूल में संस्कृत का शिक्षक नहीं है। स्कूल शहर से 40 किमी दूर होने के कारण कोई भी शिक्षक स्कूल में नहीं आना चाहता। स्कूल में 175 छात्र हैं और उन्हें पढ़ाने के लिए मात्र तीन शिक्षक हैं। वासुदेव पांचाल को संस्कृत पढ़ाने की जिम्मेदारी उनकी ड्यूटी से अलग दी गई है, क्योंकि उन्होंने खुद स्कूल में पढ़ाई की है और संस्कृत जानते हैं।
वासुदेव हर रोज दो क्लास लेते हैं और छात्र उनके पढ़ाए पाठ की सराहना करते हैं। पिछले साल इस स्कूल का हाई स्कूल रिजल्ट 100 प्रतिशत दर्ज किया गया था। वहीं स्कूल के प्रधानाचार्य महेश निंगवाल ने कहा है कि वासुदेव पांचाल को Chief Minister's Excellence Award के लिए चुना गया।