CAA के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में बोले राहत इंदौरी- कोई भी शरीफ आदमी इस कानून से इत्तेफाक नहीं रखता

Edited By Jagdev Singh, Updated: 07 Feb, 2020 02:54 PM

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मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के बडवाली चौकी पर पिछले 25 दिनों से दिल्ली के शाहीन बाग की तर्ज पर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन में गुरुवार रात मशहूर शायर राहत इंदौरी पहुंचे। आंदोलनकारियों को संबोधित करते हुए राहत ने कहा कि...

इंदौर: मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के बडवाली चौकी पर पिछले 25 दिनों से दिल्ली के शाहीन बाग की तर्ज पर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन में गुरुवार रात मशहूर शायर राहत इंदौरी पहुंचे। आंदोलनकारियों को संबोधित करते हुए राहत ने कहा कि कोई भी शरीफ आदमी चाहे वह हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई हो, वह इस कानून से इत्तेफाक नहीं रखता। पीएम मोदी के संसद में एनआरसी पर दिए उद्बोधन पर वे बोले कि हमें तो यही पता नहीं है कि हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं या अमित शाह।

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केरल में एक नेता के वायरल ऑडियो, जिसमें वह कह रहे हैं कि उर्दू का शायर राहत इंदौरी जेहादी है, पर उन्होंने जवाब दिया- "मैं 77 साल का हो गया हूं, मुझे अभी तक मालूम नहीं पड़ा कि मैं जेहादी हो गया हूं।" उन्होंने कहा- मैं मर जाऊं तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना। वे बोले- उठा शमशीर, दिखा अपना हुनर, क्या लेगा, ये रही जान, ये गर्दन है, ये सर, क्या लेगा...एक ही शेर उड़ा देगा परखच्चे तेरे, तू समझता है ये शायर है, कर क्या लेगा।

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इसके बाद उन्होंने सुनाया- आंखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो, जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो...मैं वहीं कागज हूं, जिसकी हुकूमात को हैं तलब, दोस्तों मुझ पर कोई पत्थर जरा भारी रखो। नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज दिखाने पर राहत ने तंज कसते हुए शेर सुनाया कि- घरों के धंसते हुए मंजरों में रक्खे हैं, बहुत से लोग यहां मकबरों में रक्खे हैं...हमारे सर की फटी टोपियों पे तंज न कर, ये डाक्युमेंट हमारे अजायबघरों में रक्खे हैं।

इस शेर के बाद राहत ने कहा कि मैं समझता हूं कि नरेन्द्र मोदी को इससे बड़ा डाक्युमेंट कोई नहीं दे पाएगा, जो हमारे पास मौजूद है। और सिर्फ 70 साल के नही बल्कि 700 साल के मौजूद है। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ मुस्लमानों की नहीं है...यह लड़ाई हिंदु, सिख, ईसाई...सब हिंदुस्तानियों की है। हर मजहब की लड़ाई है यह।

उन्होंने कहा कि पिछले दिनाें जब मैने यह सुना कि जामिया के बच्चों ने जब फैज की नज्म पढ़ी तो कुछ नासमझों ने फैज की नज्म का मतलब ही बदल दिया, मुझे कोई अचंभा नहीं हुआ क्योंकि मैं जानता हूं कि वह कम पढ़-लिखे हैं, ना वह हिंदी जानते हैं ना अंग्रेजी और ना उर्दू।
अगर खिलाफ हैं होने दो जान थोड़ी है, ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है।
लगेगी आग तो आऐंगे घर कई जद में, यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।
हमारे मुंह से जो निकले वहीं सदाकत है..हमारे मुंह में तुम्हारी जबान थोड़ी है।

और जो आज साहिब-ए-मसनद है। उन्होंने कहा कि इस शेर पर दाद मत दिजीएगा, इस शेर पर कहियेगा इंशाअल्लाह। जो आज साहिब-ए-मसनद हैं कल नहीं होंगे, किरायेदार हैं, कोई जाती मकान थोड़ी है...सभी का खून है शामिल यहां की मिट्‌टी में, किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है।

 

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