Edited By Himansh sharma, Updated: 29 Dec, 2025 07:41 PM

एक तरफ नागरिक नगर पालिका को टैक्स दे रहे हैं और दूसरी तरफ उसी काम के लिए दोबारा चंदा दे रहे हैं
गुना। (मिस्बाह नूर): हम वोट इसलिए देते हैं ताकि चुने हुए जनप्रतिनिधि हमारी आवाज़ बनें और टैक्स इसलिए भरते हैं ताकि हमें बुनियादी सुविधाएँ मिलें। लेकिन गुना की गोविंद गार्डन कॉलोनी के रहवासियों ने जो किया है, वह मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा है।
सालों तक शिकायतें करने और गुहार लगाने के बावजूद जब नगर पालिका की नींद नहीं खुली, तो जनता ने खुद आगे बढ़कर लगभग 30 लाख रुपये का चंदा जुटाया और सड़क निर्माण शुरू कर दिया।
करीब एक हजार की आबादी वाली इस कॉलोनी में अब कोई नगर पालिका का भूमिपूजन बोर्ड नहीं, बल्कि रहवासियों का संकल्प दिखाई देता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि सांसद, विधायक, मंत्री और कलेक्टर—कोई भी ऐसी चौखट नहीं बची जहाँ उन्होंने दस्तक न दी हो। हर चुनाव में नेता वोट मांगने पहुँचे, वादों की झड़ी लगाई, लेकिन चुनाव खत्म होते ही कॉलोनी को उसके हाल पर छोड़ दिया गया।
आख़िरकार जनता को अपना ज़ख्म खुद भरना पड़ा। सड़क निर्माण के लिए किसी ने 30 हजार, तो किसी ने 50 हजार रुपये तक दिए। यह वही पैसा है जो लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई से जोड़ा था।
एक तरफ नागरिक नगर पालिका को टैक्स दे रहे हैं और दूसरी तरफ उसी काम के लिए दोबारा चंदा दे रहे हैं, जो सरकार की जिम्मेदारी है। गोविंद गार्डन की यह घटना एक बड़ी बहस को जन्म देती है—
अगर जनता को अपनी सड़क खुद बनानी है, अपनी सुरक्षा खुद करनी है, और नाली-बिजली का इंतजाम भी चंदा करके करना है, तो फिर नगर पालिका और परिषद की प्रासंगिकता क्या रह जाती है?
जनता से वसूले जाने वाले टैक्स और शुल्कों का पैसा आखिर जा कहाँ रहा है? क्या अब “चंदा करो और काम निपटाओ” ही विकास का नया मॉडल बन गया है?
रहवासियों की यह मजबूरी एक खतरनाक मिसाल भी पेश करती है। आज जनता ने सड़क बनाई है, कल अपनी सुविधा के लिए सरकारी जमीन पर बस स्टैंड, सामुदायिक भवन या मैरिज गार्डन भी बना सकती है। बिना सरकारी अनुमति और तकनीकी मानकों के यदि निर्माण होने लगे, तो शहर का नक्शा बिगड़ना तय है।
लेकिन सवाल यही है—
दोषी कौन है? वह जनता, जो कीचड़ में गिरने को मजबूर है? या वह प्रशासन, जिसने उन्हें इस हद तक लाचार कर दिया? गोविंद गार्डन की यह सीसी सड़क केवल कंक्रीट का ढांचा नहीं है, बल्कि सिस्टम की नाकामी और लाचारी का स्मारक है।