काग़ज़ों में बनी सड़क, ज़मीन पर सिर्फ गड्ढे... भ्रष्टाचार की खुली तस्वीर! डोंगरगढ़ के विकास की खुली पोल

Edited By Vikas Tiwari, Updated: 28 Dec, 2025 05:51 PM

road exists only on paper ground reality exposes development claims in dongarga

देश विकास और आधुनिकता की बातें भले ही कर रहा हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में आज भी बुनियादी सुविधाएं लोगों के लिए संघर्ष का कारण बनी हुई हैं। राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र के घुमका ब्लॉक में ग्राम बोटेपार से खजरी तक की करीब...

डोंगरगढ़ : देश विकास और आधुनिकता की बातें भले ही कर रहा हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में आज भी बुनियादी सुविधाएं लोगों के लिए संघर्ष का कारण बनी हुई हैं। राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र के घुमका ब्लॉक में ग्राम बोटेपार से खजरी तक की करीब ढाई किलोमीटर लंबी सड़क इसकी सबसे बड़ी मिसाल बन गई है। वर्षों से बदहाल यह सड़क ग्रामीणों के लिए सुविधा नहीं, बल्कि खतरे और परेशानियों का रास्ता बन चुकी है।

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ग्रामीणों के अनुसार इस सड़क पर करीब 20–25 साल पहले सिर्फ गिट्टी और मुरूम डालकर छोड़ दिया गया था। इसके बाद न तो डामरीकरण हुआ और न ही कोई स्थायी मरम्मत। समय के साथ सड़क पूरी तरह जर्जर हो चुकी है। जगह-जगह गहरे गड्ढे बन गए हैं और बारिश के मौसम में हालात और भी भयावह हो जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि अब यह सड़क नहीं, बल्कि हादसों का रास्ता बन चुकी है। गांव की सुशीला बाई बताती हैं कि इसी सड़क पर फिसलने से उनका पैर टूट गया था। करीब दो महीने तक वे बिस्तर पर रहीं। इलाज और रोजमर्रा की परेशानियों ने पूरे परिवार को संकट में डाल दिया। उन्होंने बताया कि कई बार शिकायत करने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

ग्रामीण नारायण वर्मा और चंद्रशेखर वर्मा का कहना है कि सड़क की हालत इतनी खराब है कि पहचानना भी मुश्किल हो जाता है। इस बदहाल सड़क का सबसे ज्यादा असर किसानों पर पड़ रहा है। ग्राम बोटेपार के किसान अपनी फसल बेचने पटेवा सोसाइटी जाते हैं, जो गांव से करीब 6 किलोमीटर दूर है, लेकिन सड़क खराब होने के कारण ट्रैक्टर ले जाना जोखिम भरा हो जाता है। मजबूरी में किसानों को घुमका होकर लंबा और घुमावदार रास्ता अपनाना पड़ता है, जिससे दूरी लगभग दोगुनी हो जाती है और समय, ईंधन और मेहनत तीनों की बर्बादी होती है। इस गंभीर मुद्दे को लेकर डोंगरगढ़ विधायक हर्षिता बघेल ने विधानसभा में सवाल उठाया था। उन्होंने बताया कि बोटेपार से खजरी तक सड़क निर्माण की स्वीकृति वर्ष 2022–23 में मिल चुकी थी और टेंडर प्रक्रिया भी पूरी हो गई थी, लेकिन सरकार बदलने के बाद काम रोक दिया गया। विधानसभा में प्रभारी मंत्री की ओर से जवाब दिया गया कि यह सड़क चलने योग्य है, जबकि जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है।

ग्रामीण सवाल उठा रहे हैं कि अगर सड़क चलने लायक है, तो फिर रोज हादसों का खतरा क्यों बना रहता है? किसान अपनी फसल बाजार तक सुरक्षित क्यों नहीं पहुंचा पा रहे हैं? आज हालात ऐसे हैं कि काग़ज़ों में सड़क मौजूद है, लेकिन ज़मीन पर सिर्फ गड्ढे, धूल और परेशानी ही नजर आती है। बोटेपार और खजरी के ग्रामीण अब यही सवाल कर रहे हैं कि क्या उनकी सड़क कभी बनेगी, या फिर हर चुनाव में यह सिर्फ एक और वादा बनकर रह जाएगी?

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