'भरत' के भरोसे ने जीता था संस्कारधानी का दिल, आज फिर इस अफसर को याद कर रहे लोग

Edited By Vikas Tiwari, Updated: 20 Mar, 2021 05:35 PM

bharata s trust had won the heart of sansadhani

भरत यादव आईएएस बैच 2008 तत्कालीन कलेक्टर जबलपुर यह उस भरोसे का नाम है। जिसने कोरोना से न केवल टक्कर ली बल्कि लोगों को भी समझाया, की वे कोरोना से जंग जीत सकते हैं। आज का ही वो दिन था जब मध्यप्रदेश के जबलपुर में पहली बार कोरोना ने दस्तक दी थी। विदेश...

जबलपुर (विवेक तिवारी): भरत यादव आईएएस बैच 2008 तत्कालीन कलेक्टर जबलपुर यह उस भरोसे का नाम है। जिसने कोरोना से न केवल टक्कर ली बल्कि लोगों को भी समझाया, की वे कोरोना से जंग जीत सकते हैं। आज का ही वो दिन था जब मध्यप्रदेश के जबलपुर में पहली बार कोरोना ने दस्तक दी थी। विदेश यात्रा करके लौटे अग्रवाल परिवार के 3 सदस्य और एक छात्र कोरोना का शिकार बना था। लेकिन उसके बाद यानी कि 20 मार्च से लेकर 2 अप्रैल तक मानो कोरोना को भरत यादव ने अपनी कार्यकुशलता के चलते पिंजरे में ही कैद कर दिया था। या जान लीजिए कि भरत ने लोगों के मन में वह जज्बा पैदा किया, कि आप किसी भयंकर राक्षस से भी टकरा सकते हैं। यह तो महज कोरोना है। 20 मार्च को 4 केस जबलपुर में दर्ज हुए। उसके बाद 2 अप्रैल तक कोई भी केस जबलपुर में नहीं आया। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी जबलपुर के तत्कालीन कलेक्टर भरत यादव की कार्यकुशलता, जिनके वर्किंग प्लान के साथ जनता भी चलती रही और कोरोना की एंट्री पूरी तरह से कंट्रोल हो गई। एक बार फिर मध्यप्रदेश में कोरोना के केस बढ़ रहे हैं। ऐसे में आखिर कैसे भरत यादव ने यह सब कुछ किया उनकी स्टाइल क्या थी? पंजाब केसरी ने परखा, और यहां विश्लेषण के तौर पर हम सामने ला रहे हैं।

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कांटेक्ट ट्रेसिंग  से लेकर कंटेनमेंट जोन
20 मार्च को मध्य प्रदेश का पहला केस जबलपुर में निकला था, और उसके बाद से ही जिला प्रशासन एक्टिव हो गया था। तत्कालीन जबलपुर कलेक्टर भरत यादव ने ऐसी कार्यशैली डेवलप की। जिसके सहारे कोरोना केस थम से गए कॉन्ट्रैक्ट ट्रेसिंग का फार्मूला भरत यादव ने ही सबसे पहले  जबलपुर में लागू किया इसके सहारे अगर कोई व्यक्ति कोरोना का शिकार हुआ है, तो वह किससे किससे संपर्क में आया और वह कहां-कहां पर गया। इस बात का पता लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम तैयार की इसके साथ ही उसमें जिला प्रशासन के अफसर भी शामिल रहे और पुलिस बल को भी इसमें शामिल किया गया। जितनी जल्दी लोगों की पहचान की जा सके और उनको इलाज दिया जा सके। इसी फार्मूले को लेकर भरत यादव आगे बढ़ रहे थे। तो जिस-जिस इलाके में 20 मार्च को सबसे पहले केस निकले उस इलाके को पूरी तरह से सील कर दिया गया और उसके बाद उस इलाके में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जांच रिपोर्ट निकाली गई। इस तरह से लोगों के संपर्क को जानना और उसके बाद इलाके को सील करना यह एक बड़ा फार्मूला था। जिसके चलते संक्रमण का फैलाव रुक गया और जो भी केस आते थे वह तत्काल ट्रैस किए गए थे, जिसके चलते कोरोना की रफ्तार भी धीमी हो गई थी।

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संवाद और समर्थन बना हथियार...
किसी भी लक्ष्य को पूरा करने के लिए संवाद और समर्थन बेहद जरूरी होता है। तत्कालीन जिला कलेक्टर भरत यादव इन दोनों कला में महारत हासिल कर चुके थे, वे जनता के बीच रहते थे जनता से संवाद स्थापित करते थे। तत्काल कॉल को रिसीव करना, किसी प्रकार के मैसेज को प्राप्त करते ही उस पर रिस्पांड करना, यह उनकी कला में ही शामिल था। या कहें कि व्यक्ति का स्वभाव ही यही थ। भरत यादव 24 घंटे मैदान पर थे और अपनी पूरी टीम को उन्होंने मैदान पर उतार दिया था। सामाजिक संगठनों का सहयोग लेना शुरु हो गया था और उनको बताया गया था, कि आप लोग घर में रहें सुरक्षित रहें। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और शायद भरत यादव की गंभीरता कि चलते ही लोगों ने उनका समर्थन किया। उनके संवाद में एक भरोसा था। शायद इसी भरोसे का नाम जबलपुर वासियों के लिए भरत यादव पड़ गया था। भरत यादव ने जब जैसी आवाज उठाई लोगों ने उनका समर्थन किया। कंटेनमेंट जोन में लोग परेशान ना हो, लिहाजा वहां तक खाद्य सामग्री पहुंचाने का बीड़ा भी जिला प्रशासन ने उठाया। भरत यादव 24 घंटे फील्ड पर रहते थे। हर कंटेनमेंट जोन में वे जाते थे 20 मार्च से जो यह सिलसिला शुरू हुआ। वह सदैव चलता रहा। 4 केस को कंट्रोल करने के बाद उन्होंने इस तरह से बेहतर समन्वय स्थापित किया, कि 2 अप्रैल तक जबलपुर में केस पूरी तरह से रुक गए थे। भारत में लगातार केस पढ़ रहे थे। लेकिन जबलपुर में थमे हुए थे उस वक्त यह एक रिकॉर्ड कायम हो चुका था, कि 12 दिन तक भारत में कहीं पर ऐसा नहीं हुआ कि कोई केस ना निकले हो। लेकिन जबलपुर में यह रिकॉर्ड कायम हुआ कि 12 दिन में कोई भी केस निकल कर सामने नहीं आया। जिला प्रशासन की  कुशलता और जबलपुर के इस फार्मूले को भारत में लागू भी किया गया। कई दूसरे राज्य और जिले इस स्टाइल को फॉलो कर चुके थे और जनता का सहयोग लगातार मिल ही रहा था।

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जनता के सहयोग से सफलता
भरत यादव बताते हैं कि किसी भी जंग को जनता के सहयोग के बिना नहीं जीता जा सकता। जबलपुर के कलेक्टर के कार्यकाल के वक्त कोरोना  का सामना हम सब ने जनता के साथ मिलकर किया था, और हमने जंग जीती भी थी। उस वक्त हमने कोरोना के केस कंट्रोल किए थे। इसके पीछे जनता का ही सहयोग था। हमारे सभी प्रयास जनता के लिए थे, और जनता हमारे साथ खड़ी हुई थी। यह सभी प्रयास 24 घंटे के थे हम 24 घंटे जनता के साथ खड़े रहते थे। उनके साथ बेहतर संवाद करते थे। लिहाजा उस वक्त का दौर हमने कंट्रोल कर लिया। सावधानी और सुरक्षा के तहत कोरोना से जंग जीती जा सकती है। लापरवाही में कोरोना हम पर हावी हो जाता है। लिहाजा हमें सावधानी रखना बेहद जरूरी है। 

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