Edited By Himansh sharma, Updated: 10 Dec, 2025 07:32 PM
भारतीय अपराध जगत की कहानियों में “निर्भय गुर्जर” का नाम आज भी दहशत की तरह गूंजता है।
MP Desk: धुरंधर फिल्म आने के बाद पाकिस्तान के रहमान डकैत के बारे में कई किस्से और कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। आपको बता दें कि भारतीय अपराध जगत की कहानियों में “निर्भय गुर्जर” का नाम आज भी दहशत की तरह गूंजता है। चंबल के बीहड़ों में राज करने वाला यह डकैत सिर्फ अपराधी नहीं, एक ऐसा खौफ था जिसने तीन राज्यों की पुलिस को 35 साल तक धरातल से लेकर जंगल की गुफाओं तक भटकाया। अपहरण, फिरौती, राजनीतिक संरक्षण और निर्दयी हत्याओं की लंबी फेहरिस्त ने उसे चंबल का दस्यु-सम्राट बना दिया था।
गरीबी, अत्याचार और विद्रोह से जन्मा एक डकैत
1957 में यूपी–एमपी बॉर्डर के एक छोटे से गांव में पैदा हुए निर्भय गुर्जर का बचपन गरीबी और अन्याय के बीच बीता। स्कूल से दूरी और गुस्से से भरा स्वभाव उसे धीरे-धीरे गांव की लड़ाइयों से अपराध की पहली सीढ़ियों तक ले आया।
किशोरावस्था में चोरी-मारपीट, और 20 की उम्र तक पहला मर्डर केस—गांव वाले उसी समय कहने लगे थे:
“ये लड़का एक दिन बड़ा डकैत बनेगा।”
अपने गिरोह का गठन और बीहड़ों में खौफ
70 के दशक के अंत में उसने 4–5 लोगों के साथ अपना गिरोह बनाया, जो देखते ही देखते 40 हथियारबंद लोगों का गैंग बन गया। चंबल के बीहड़ों की पगडंडियों, गुफाओं, और नदी मार्गों की उसकी अद्भुत समझ पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी।
निर्भय गुर्जर का आतंक: 200 हत्याएं और अनगिनत अपहरण
डकैती और फिरौती निर्भय की “कमाई का धंधा” था। दिनदहाड़े अपहरण करना, महीनों कैद में रखना और भारी फिरौती लेना—ये उसकी पहचान थी। कई पीड़ित कभी वापस नहीं लौटे।
स्थानीय राजनीति से उसका गहरा संबंध था। नेता उससे वोट दिलवाते और बदले में उसे हथियार व संरक्षण मिलता।

गांव वालों का डर–सम्मान
भले ही वह खूंखार था, लेकिन गरीबों की मदद और विवादों को अपने तरीके से सुलझाने के कारण कई ग्रामीण उसे सम्मान भी देते थे।
औरतें बच्चों को डराती थीं
“सो जा वरना निर्भय आ जाएगा।”
‘मैं डकैत नहीं, गरीबों का मसीहा हूं’
90 के दशक में मीडिया ने उसे दस्यु-सम्राट कहा। इंटरव्यू देते हुए वह अक्सर कहता था—
“मैं गरीबों के लिए लड़ रहा हूँ।”
पर पुलिस के रिकॉर्ड उसकी निर्दयता की अलग ही कहानी बयां करते हैं।
तीन राज्यों की पुलिस बार-बार ऑपरेशन करती, पर वह हर बार गुफाओं, चट्टानों और यहाँ तक कि नदी के भीतर घंटों छिपकर बच निकलता था।
अंत: आगरा के बाह क्षेत्र में मौत
7 नवंबर 2005 की रात, पुलिस को एक बड़े मुखबिर से पता चला कि निर्भय गुर्जर अपने परिवार से मिलने आने वाला है। बाह क्षेत्र में घेराबंदी की गई और मुठभेड़ घंटों चली।
अंततः चंबल का खूनी अध्याय वहीं समाप्त हो गया।
उसकी मौत पर भी सवाल उठे
कुछ लोगों का दावा था कि “उसे गुप्त रूप से पकड़ा गया और बाद में खत्म किया गया।” यह रहस्य आज भी चंबल में फुसफुसाहट की तरह तैरता है।
एक युग का अंत, पर डर अब भी ज़िंदा
निर्भय गुर्जर की मौत के साथ चंबल के आतंक का एक दौर खत्म हुआ।
लेकिन बुजुर्ग आज भी बच्चों को चेतावनी देते हैं
“रात को मत घूमना… वरना निर्भय गुर्जर पकड़ ले जाएगा।”
उसकी कहानी आज भी भारतीय अपराध इतिहास का सबसे डरावना, रहस्यमयी और चर्चित अध्याय मानी जाती है।