Edited By ASHISH KUMAR, Updated: 23 Mar, 2019 04:51 PM
ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण पर रोक लगाकर हाईकोर्ट ने कमलनाथ सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है। जिसको लेकर राज्य सरकार अगले हफ्ते कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी। जिसमें कोर्ट को बताया जाएगा कि 8 मार्च 2019 को जो अध्यादेश लाया गया, उसका लाभ शिक्षा के क्षेत्र में...
भोपाल: ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण पर रोक लगाकर हाईकोर्ट ने कमलनाथ सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है। जिसको लेकर राज्य सरकार अगले हफ्ते कोर्ट में अपना पक्ष रखेगी। जिसमें कोर्ट को बताया जाएगा कि 8 मार्च 2019 को जो अध्यादेश लाया गया, उसका लाभ शिक्षा के क्षेत्र में न होकर सर्विसेज क्षेत्र में होना था।
मध्यप्रदेश के उप महाधिक्ता अजय गुप्ता ने बताया कि जब प्रीपीजी मामले की सुनवाई चल रही थी, तभी उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि 8 मार्च 2019 को 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान का जो अध्यादेश लाया गया, उसका सरोकार सिर्फ सर्विसेज से था न कि एजुकेशन से। क्योंकि प्रीपीजी में 27 फीसदी आरक्षण का प्रश्न ही नहीं उठता, ओबीसी वालों को सिर्फ सर्विसेज के सिलसिले में यह लाभ प्रदान किया जाएगा। फिलहाल, एजुकेशन के रोस्टर को लेकर इसे लागू करने का कोई प्रावधान ही नहीं किया गया है। वहीं इस बात को रिकॉर्ड पर लेने के बाद हाईकोर्ट ने दोबारा स्थिति स्पष्ट करने के लिए सरकार को शिक्षा में 27 फीसदी ओबीसी रिजर्वेशन पर रोक लगाए जाने के परिप्रेक्ष्य में कोई एतराज नहीं है? सवाल के जवाब में सरकार की ओर से हां में जवाब दिया गया, जिसके बाद प्रीपीजी काउंसलिंग में 27 फीसदी ओबीसी रिजर्वेशन पर अंतरिम रोक लगा दी गई। वहीं ओबीसी आरक्षण के मामले में स्थिति और स्पष्ट करते हुए राज्यसभा सदस्य वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तन्खा ने ट्वीट किया गया कि वह आगामी सप्ताह हाईकोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखेगी।
इस संबंध में हाईकोर्ट ने अंतरिम स्थगनादेश के साथ ही सरकार को नोटिस जारी कर जवाब-तलब भी किया है। जिसके लिए एक सप्ताह का समय दिया गया है। लिहाजा, अब सरकार अपना लिखित जवाब प्रस्तुत करेगी। उसमें यह साफ किया जाएगा कि आखिर सर्विसेज में 27 फीसदी ओबीसी रिजर्वेशन का अध्यादेश क्यों लाना पड़ा और उसके पीछे उनकी क्या मंशा रही है।