Edited By Himansh sharma, Updated: 04 Sep, 2025 11:22 AM

राजनांदगांव रेंज का आईजी ऑफिस बुधवार को किसी जन सुनवाई केंद्र जैसा नज़ारा पेश कर रहा था
खैरागढ़। (हेमंत पाल): राजनांदगांव रेंज का आईजी ऑफिस बुधवार को किसी जन सुनवाई केंद्र जैसा नज़ारा पेश कर रहा था। खैरागढ़, मानपुर और राजनांदगांव से दर्जनों नक्सल पीड़ित परिवार वहां पहुँचे—जिनकी आँखों में न्याय की उम्मीद थी, और होठों पर सिर्फ़ एक सवाल—“सरकार की नीति हमारे लिए कब ज़मीन पर उतरेगी?”
कोई माँ अपने बेटे की पुरानी तस्वीर लिए खड़ी थी, तो कोई युवती अपनी विधवा माँ के साथ चुपचाप कतार में खड़ी थी। बच्चों की स्कूल ड्रेस अब भी इंतज़ार में है, कि सरकार उनके भविष्य का वादा पूरा करे।
ये सभी लोग छत्तीसगढ़ सरकार की नक्सलवादी आत्मसमर्पण/पीड़ित राहत पुनर्वास नीति-2025 को लेकर शिकायतें लेकर पहुँचे थे। नीति कहती है—नौकरी, 15 लाख रुपये मुआवज़ा, आवास और बच्चों की शिक्षा। हक़ीक़त ये है—कोई नौकरी नहीं, कोई मुआवज़ा नहीं, कोई ठिकाना नहीं।
पीड़ा की तस्वीरें, शब्दों से ज़्यादा बोलती हैं
एक माँ की आँखों में आँसू थे—“मेरा बेटा पुलिस के लिए मुखबिरी करता था, नक्सलियों ने मार डाला। सरकार ने कहा था नौकरी मिलेगी—अब पाँच साल हो गए, कोई सुनवाई नहीं।”
राजनांदगांव से आए एक बुजुर्ग बोले—“फाइलों में हम ज़िंदा हैं, लेकिन सिस्टम ने हमें मरने को छोड़ दिया है।”
नीति है, लेकिन नीयत कहाँ है?
ज्ञापन सौंपने आए पीड़ितों ने कहा कि गृहमंत्री स्तर तक से आदेश निकले हैं, लेकिन ज़िला प्रशासन में सबकुछ ठंडे बस्ते में है। “हर अफ़सर सिर्फ़ कहता है—'देखते हैं'। लेकिन कब तक?”
आंदोलन की चेतावनी
पीड़ित परिवारों के प्रतिनिधि धीरेंद्र साहू ने चेतावनी दी— “अगर इस बार भी सिर्फ़ आश्वासन मिला, तो अगली बार हम रायपुर में धरना देंगे। राजधानी में डेरा डालेंगे। नीति का लाभ चाहिए, भाषण नहीं।”