राधा-कृष्ण की वो मूर्ति जो भक्तों से करती हैं बातें! आमजन के लिए मंदिर के खुले कपाट, भक्त सुन पाएंगे भगवान की आवाज़

Edited By meena, Updated: 23 Jun, 2025 07:24 PM

doors of radha krishna temple opened in khairagarh

भारत की धरती रहस्यों से भरी पड़ी है, कई जगहें तो ऐसी है जिनके बारे में जानकर बेहद हैरानी होती है...

खैरागढ़ (हेमंत पाल) : भारत की धरती रहस्यों से भरी पड़ी है, कई जगहें तो ऐसी है जिनके बारे में जानकर बेहद हैरानी होती है। ऐसे ही रहस्यों से भरी पड़ी है छत्तीसगढ़ की धरती। हम बात कर रहे हैं खैरागढ़ स्थित राजमहल कमल विलास पैलेस की। जहां स्थित प्राचीन राधा-कृष्ण मंदिर, जहां कभी रियासत के राजा अपने प्रश्नों का उत्तर खोजने आते थे, अब दशकों बाद फिर से आम जनता के लिए इस मंदिर के पठ खोल दिए गए है मंदिर ही नहीं, उसी परिसर में स्थित ऐतिहासिक दरबार हॉल भी अब लोगों के लिए उपलब्ध रहेगा। ये दोनों धरोहरें सालों से बंद थीं, लेकिन इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. लवली शर्मा के प्रयासों से अब इस ऐतिहासिक विरासत को फिर आम जनता देख पाएगी और खैरागढ़ रियासत के गौरवशाली इतिहास को महसूस भी कर पाएगी। यह सिर्फ एक मंदिर के कपाट खुलने की कहानी नहीं है, यह उस आस्था की वापसी है, जिसे समय की धूल ने ढक दिया था।

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खैरागढ़ रियासत के राजा का महल जिसका नाम कमल विलास पैलेस था, इस महल को राजा ने इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए दान कर दिया था, 1956 में स्थापित यह एशिया का पहला और इकलौता संगीत और ललित कला विश्वविद्यालय है। लेकिन इसके भीतर छुपा धार्मिक और राजसी इतिहास विश्वविद्यालय के निर्माण के बाद इस मंदिर को आमजनों के लिए बंद कर दिया गया था लेकिन अब पहली बार सार्वजनिक रूप से खुला है।

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विश्वविद्यालय परिसर के अंदर स्थापित श्री कृष्णा और राधा भगवान के इस मंदिर की विशेषता यह है कि खैरागढ़ रियासत के राजा जब किसी कठिन निर्णय के मोड़ पर होते थे, तो वे इस मंदिर में प्रार्थना करते थे, और भगवान राधा कृष्ण से उन्हें उनके सारे सवालों का जवाब मिल जाता था। मंदिर की राधा-कृष्ण प्रतिमाएं आज भी उतनी ही जीवंत हैं। काले पत्थर के श्रीकृष्ण और सफेद संगमरमर की राधारानी भक्तों के हृदय को छू जाते हैं। करीब पचास साल पहले इस मंदिर से कीमती आभूषणों की चोरी हुई थी। इसके बाद मंदिर को आम दर्शन के लिए बंद कर दिया गया था। वर्षों तक केवल पुजारी को भीतर प्रवेश की अनुमति थी। वहीं दरबार हॉल, जो कभी राजसी सभाओं का साक्षी रहा, पंद्रह साल से बंद पड़ा था।

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वहां की दुर्लभ चित्रकला, ऐतिहासिक वस्तुएं अंधेरे में कैद थीं। जब डॉ. लवली शर्मा ने विश्वविद्यालय में कार्यभार संभाला, तो उन्हें परिसर में मौजूद इन ऐतिहासिक संरचनाओं की जानकारी मिली। उन्होंने खुद मंदिर का निरीक्षण किया, उसकी सफाई करवाई, विधिवत पूजा-अर्चना करवाई और फिर यह निर्णय लिया कि अब मंदिर और दरबार हॉल आम लोगों के लिए खोले जाएंगे। उनका मानना है कि यह धरोहरें सिर्फ विश्वविद्यालय की नहीं, पूरे समाज की संपत्ति हैं।

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डॉ. लवली शर्मा ने बताया कि यह बहुत सुंदर मंदिर है, राधा और श्रीकृष्ण जी की प्रतिमाएं इसमें स्थापित हैं। जब मैंने इस विश्वविद्यालय में आकर देखा तो उसमें ताला लगा हुआ था। जब मैं मंदिर के भीतर गई और पूजा की, तो जो दर्शन लाभ मुझे मिला, उसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती। वह मेरे लिए अद्वितीय था और जो अनुभूति हुई,  उससे मुझे लगा कि इसे सिर्फ मैं ही क्यों अनुभव करूं? जो भी यहां आए, उन्हें भी दर्शन लाभ मिले। मुझे राजपरिवार से जानकारी मिली कि भगवान की जो मूर्तियां हैं, वे ‘टॉकिंग गॉड’ हैं। यानी बात करती हैं और मैंने खुद जाकर वहां यह अनुभव किया है।”

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कमल विलास पैलेस, जो अब इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय है, खुद एक ऐतिहासिक प्रतीक है। 1956 में स्थापित यह एशिया का पहला और इकलौता संगीत और ललित कला विश्वविद्यालय है। लेकिन इसके भीतर छुपा धार्मिक और राजसी इतिहास अब पहली बार सार्वजनिक रूप से खुला है। अब न केवल श्रद्धालु भगवान के दर्शन कर सकते हैं, बल्कि छात्र और पर्यटक भी राजसी विरासत को नजदीक से महसूस कर सकते हैं। आने वाले समय में दरबार हॉल के आसपास के अन्य कमरे भी साफ-सुथरे कर आम लोगों के लिए खोले जाएंगे।

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यहां के स्थानीय जानकार भागवत शरण सिंह ने बताया कि, खैरागढ़ का शुरुआत से ही गौरवशाली इतिहास रहा है। राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह और रानी पद्मावती ने इस महल को विश्वविद्यालय के लिए दान किया था। यह महल लगभग 1885 के आसपास का है और पहले कमल विलास पैलेस कहा जाता था। यह राजा कमल नारायण सिंह के समय का स्ट्रक्चर है। मंदिर भी तब का ही है और निश्चित तौर पर खैरागढ़ के इस गौरवशाली मंदिर का पुनः खुलना अपने आप में श्रेयस्कर है। विश्वविद्यालय का यह निर्णय अत्यंत सार्थक है।” डॉ. लवली शर्मा का यह निर्णय एक उदाहरण बन गया है कि जब नेतृत्व में दृष्टि हो और दिल में विरासत के प्रति सम्मान, तो इतिहास फिर से जी उठता है। खैरागढ़ अब न सिर्फ शिक्षा और कला का केंद्र है, बल्कि आस्था और परंपरा का नया संगम भी बन चुका है।

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