Edited By Vikas Tiwari, Updated: 27 Dec, 2025 07:26 PM

सिख धर्म के दसवें गुरु, दशम पिता श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज जी का 359वां प्रकाश पर्व इस वर्ष बुरहानपुर के ऐतिहासिक श्री गुरुद्वारा बड़ी संगत पातशाही दशमी में अत्यंत श्रद्धा, भव्यता और आध्यात्मिक उल्लास के साथ मनाया गया। यह गुरुद्वारा सिख इतिहास की...
बुरहानपुर (राजबीर सिंह): सिख धर्म के दसवें गुरु, दशम पिता श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज जी का 359वां प्रकाश पर्व इस वर्ष बुरहानपुर के ऐतिहासिक श्री गुरुद्वारा बड़ी संगत पातशाही दशमी में अत्यंत श्रद्धा, भव्यता और आध्यात्मिक उल्लास के साथ मनाया गया। यह गुरुद्वारा सिख इतिहास की एक ऐसी अमूल्य धरोहर है, जहां से जुड़ा एक अलौकिक और दुर्लभ प्रसंग आज भी संगत की अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है।

इतिहास के अनुसार, नांदेड़ (दक्षिण) की ओर प्रस्थान से पूर्व श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज जी लगभग 22 दिनों तक बुरहानपुर में विराजमान रहे थे। इस दौरान उन्होंने संगत को धर्म, त्याग, साहस, मानवता और सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। इसी पावन कालखंड में दशम पिता ने श्री गुरु ग्रंथ साहेब जी पर अपनी स्वर्ण कलम (सोने की बीड़) से हस्ताक्षर किए, जो विश्व में अपने आप में एकमात्र और अद्वितीय माने जाते हैं।
इन पवित्र स्वर्ण हस्ताक्षरों के दर्शन वर्ष में केवल एक बार ही संगत को करवाए जाते हैं। यही कारण है कि प्रकाश पर्व के अवसर पर देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु बुरहानपुर पहुंचते हैं। जैसे ही संगत को श्री गुरु ग्रंथ साहेब पर अंकित गुरु महाराज के स्वर्ण हस्ताक्षरों के दर्शन होते हैं, पूरा वातावरण “वाहेगुरु” के जयकारों से गूंज उठता है और संगत भाव-विभोर हो जाती है। प्रकाश पर्व के पावन अवसर पर गुरुद्वारे में शब्द कीर्तन, अखंड पाठ साहिब और विशाल गुरु का लंगर आयोजित किया गया। गुरु का लंगर सेवा, समर्पण और समानता का प्रतीक बना, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसादी ग्रहण की। गुरुद्वारे को भव्य रूप से सजाया गया था और संगत की सेवा में सेवादार दिन-रात तन-मन से जुटे रहे।
यह आयोजन केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सिख इतिहास की जीवंत विरासत है, जो आने वाली पीढ़ियों को श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज जी के बलिदान, त्याग, साहस और आध्यात्मिक तेज की सतत याद दिलाता है। बुरहानपुर की यह पावन धरती आज भी गुरु परंपरा की दिव्यता और गौरव को सजीव बनाए हुए है।