Video: लॉकडाउन में पति पत्नी ने रचा इतिहास, प्यास बुझाने के लिए आंगन में खोद डाला कुआं

Edited By meena, Updated: 21 May, 2020 05:52 PM

एक ओर जहां कोरोना की वजह से लोग अपने घरों में कैद हैं और लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस समय का सदुपयोग कर इतिहास रचने में लगे हुए हैं। सतना के आदिवासी बाहुल्य गांव बरहा मवान के एक दंपत्ति ने भी कुछ ऐसा ही कारनामा...

सतना(फिरोज बागी): एक ओर जहां कोरोना की वजह से लोग अपने घरों में कैद हैं और लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस समय का सदुपयोग कर इतिहास रचने में लगे हुए हैं। सतना के आदिवासी बाहुल्य गांव बरहा मवान के एक दंपत्ति ने भी कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है। दरअसल इस गांव में पानी की बड़ी किल्लत है और पानी के लिए ग्रामीणों को कई कोस दूर जंगल से पानी लाना पड़ता था। ऐसे में लॉक डाउन के समय घर में रहते हुए पति पत्नी ने मिलकर अपने गांव में ही एक कुआं खोद डाला जिसके बाद अब पूरे गांव के लोग इस कुएं का पानी उपयोग कर रहे हैं इतना ही नहीं इस कुआं के जरिये ही इनके आजीविका का नया रास्ता खुल गया है। 

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कहते हैं जब आदमी किसी काम को करने की ठान लेता है तो उसके हौसले के आगे कठिन से कठिन कार्य भी छोटा हो जाता है। ऐसे ही सच्चाई बयां कर रही यह तस्वीर सतना जिले के मजगामा ब्लॉक अंतर्गत बरहा मवान गांव की है। आदिवासी बाहुल्य इस गांव के ज्यादातर लोग जंगल से लकड़ी काट कर बेचते हैं और यही उनकी आजीविका का मुख्य जरिया है लेकिन कोरोनावायरस के चलते जब देशभर में लॉकडाउन है तो इन परिवारों के सामने भी रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया।

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गांव के ही राजू महावासी और उसकी पत्नी राजलली को ना तो जंगल से लकड़ी काटने को मिल रही थी और ना ही कोई इन लकड़ियों का खरीदार था, यहां तक कि कहीं इनको मजदूरी भी नहीं मिल पा रही थी। ऐसे में पति पत्नी ने मिलकर घर के आंगन में ही  कुआं खोदने की ठान ली। फिर क्या था इनके हौसलों के आगे चट्टाने भी परास्त हो गए और 25 दिन की कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार वह दिन भी आ गया जब कुआं से कल-कल करते हुए पानी की धारा फूट पड़ी। कुएं से पानी के धारा निकलने की खबर फैली तो ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना ना रहा और अब यह कुआं पूरे गांव की प्यास बुझा रहा है।

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कहते हैं जब रास्ते बनते हैं तो बनते ही चले जाते हैं। जब घर के आंगन में कुआं होने से पर्याप्त पानी मिलने लगा तो जंगल से लकड़ी काटकर बेचने वाला यह परिवार अपने खाली पड़ी जमीन में सब्जियां उगाने लगा और दूसरों की मजदूरी करने की बजाय अब अपने खेती-बाड़ी को ही मूल पेशा बना लिया है। इस आदिवासी दंपत्ति ने गांव के दूसरे लोगों के सामने एक मिसाल पेश की है यदि आदमी चाहे तो कठिन से कठिन समस्या का समाधान हो सकता है बस जरूरत है तो सिर्फ एक हौसले की। इस दंपत्ति की कहानी सुनने के बाद प्रशासनिक अधिकारी भी इनकी सराहना करने से थक नहीं रहे हैं।

 

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