क्या भाजपा को कमजोर कर रहे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया ?

Edited By Vikas kumar, Updated: 08 Jun, 2020 11:42 AM

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से तो जिस शख्स की दम पर मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता गिफ्ट में मिली है, उसे लेकर इस तरह के सवाल का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन राजनीति का उसूल है, कि इसमें हमेशा से ही ...

मध्यप्रदेश डेस्क (हेमंत चतुर्वेदी): वैसे तो जिस शख्स की दम पर मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता गिफ्ट में मिली है, उसे लेकर इस तरह के सवाल का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन राजनीति का उसूल है, कि इसमें हमेशा से ही तत्कालीन परिणामों की बजाए दूरगामी परिणामों और स्थितियों को ज्यादा महत्व दिया जाता है, इस विषय में अगर हम बात करें, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया से जुड़े ऐसे कई पहलू हैं जो कहीं न कही भाजपा के स्वास्थ्य पर आने वाले समय में बुरा असर डाल सकते हैं या यूं कहें कि कुछेक स्तर पर इसका असर दिखाई देना शुरू भी हो गया है। आइए उन पहलुओं पर नजर डालते हैं।

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बदल गई मध्यप्रदेश भाजपा की छवि…
मध्यप्रदेश के जिस भाजपा संगठन को उसकी देशभर की सबसे आदर्श इकाई माना जाता था, इस तोड़फोड़ के बाद उसकी छवि एकाएक बदल गई है। खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की छवि पर भी इसका खासा असर पड़ा है। आलम यह है, कि भाजपा द्वारा की गई यह तोड़फोड़ ही कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा और प्रभावी चुनावी मुद्दा बन गई है, जिसका पार्टी को नुकसान होना भी लगभग तय माना जा रहा है। यह बात खुद संघ अपने आंतरिक सर्वे में स्वीकार कर चुका है, कि संबंधित दलबदल को प्रदेश की जनता खरीद फरोख्त के साथ जोड़कर देख रही है, और चुनाव में वह इसके खिलाफ वोट कर सकती है। कुल मिलाकर ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा में किसी भी नीयत के साथ शामिल हुए हों, लेकिन जनता की अदालत में इसका नुकसान लगभग तय माना जा रहा है। 

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चुनाव में अपनों की मुखालिफत का डर…
जो भाजपा पिछले कई चुनावों में मामूली स्तर पर नाराजगी के साथ अपना टिकट वितरण सम्पन्न कर लेती थी, उसके सामने ये उपचुनाव में टिकट वितरण गले की हड्डी साबित होता जा रहा है, जिसका एकमात्र कारण हैं सिंधिया खेमे के नेताओं को उपचुनाव में अपना प्रत्याशी बनाना। आलम यह है, कि पिछले लगभग दो महीने के डैमेज कंट्रोल की कवायदों का पार्टी में कोई असर नहीं दिख रहा और अभी भी नाराज नेता अपने रुख पर कायम हैं। हालांकि पार्टी द्वारा संबंधित नेताओं को मनाने के भरपूर दावे किए जा रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता नहीं कि चुनाव तक वह सबकुछ ठीक कर सकेगी। और तो और अनौपचारिक तौर पर तो कई नेता आगामी उपचुनाव में अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी का विरोध करने की बात तक कह चुके हैं, जो भाजपा के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है। 

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सामंजस्य बना पार्टी की चुनौती…
जब वीडी शर्मा ने मध्यप्रदेश भाजपा की कमान संभाली थी, उसके कुछ दिन बाद ही उनकी टीम के विस्तार का अंदाजा लगाया जाने लगा था, इसका प्रारूप भी लगभग तय माना जा रहा था। लेकिन सिंधिया के साथ बड़ी संख्या में कांग्रेसियों द्वारा भाजपा में शामिल होने के बाद वीडी शर्मा का गणित गड़बड़ा गया, और अब उनके सामने संगठन में सिंधिया समर्थकों को एडजस्ट करने की चुनौती है। यह सामंजस्य बरकरार रखना पार्टी नेतृत्व के लिए सरदर्द साबित हो रहा है, कई जिलों में तो जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में भी इसका असर दिखाई दे चुका है। हालांकि उस वक्त सिंधिया खेमे की नाराजगी सामने नहीं आ सकी, लेकिन माना जा रहा है, कि आगामी समय में यह उपेक्षा भाजपा के लिए परेशानी का कारण बन सकती है। जानकारों का तो यहां तक कहना है, कि आने वाले समय में सिंधिया खेमे के तौर पर भाजपा में एक और धड़ा तैयार होना तय है।

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