Edited By Himansh sharma, Updated: 21 Dec, 2025 08:34 PM

छत्तीसगढ़ के धमधा जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत खैरझिटी में सरपंच और उनके परिजनों की कथित दबंगई से ग्रामीणों का जनजीवन प्रभावित हो रहा है।
धमधा। (हेमंत पाल): छत्तीसगढ़ के धमधा जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत खैरझिटी में सरपंच और उनके परिजनों की कथित दबंगई से ग्रामीणों का जनजीवन प्रभावित हो रहा है। गांव के लोगों ने सरपंच डलेश्वरी वर्मा और उनके ससुर मोती राम वर्मा पर पंचायत मार्ग पर अवैध अहाता (घेराबंदी) निर्माण कराकर आवागमन बाधित करने का गंभीर आरोप लगाया है।
पंचायत मार्ग पर ‘अहाता’ ग्रामीणों की राह में रोड़ा
ग्रामीणों के अनुसार पंचायत के जिस मार्ग पर अहाता बनाया जा रहा है, उसी रास्ते से सैकड़ों ग्रामीणों का रोज़ाना आवागमन होता है। इसी मार्ग पर ग्रामीणों की निजी जमीन, बिजली कार्यालय और चावल सोसायटी भी स्थित है। अहाता निर्माण से लोगों की आवाजाही बाधित हो गई है, जिससे रोजमर्रा के काम प्रभावित हो रहे हैं।
ग्रामीणों का दावा है कि जनपद अधिकारियों ने अहाता निर्माण पर रोक लगाई थी, इसके बावजूद सरपंच अपने निजी पैसे का हवाला देकर पंचायत के नाम से निर्माण कराकर रास्ता घेरने का प्रयास कर रही हैं। इससे प्रशासनिक आदेशों की अवहेलना का आरोप भी गहराता जा रहा है।
सरकारी बोर का निजी उपयोग? सूखे तालाब, हरा-भरा खेत
मामला यहीं नहीं थमता। ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि आश्रित ग्राम डीहिपारा में सरपंच के निजी संबंधी, पूर्व सरपंच जोहन वर्मा की जमीन पर सरकारी बोर करा दिया गया है। आरोप है कि उस बोर के पानी से सरपंच के निजी लोगों द्वारा खेतों की सिंचाई की जा रही है, जबकि गांव के तालाब सूखे पड़े हैं। इससे जल संसाधनों के दुरुपयोग और पक्षपात का सवाल खड़ा हो रहा है।
उग्र आंदोलन की चेतावनी
ग्रामीणों ने साफ कहा है कि यदि सरपंच की मनमानी और दबंगई पर रोक नहीं लगी, तो वे उग्र आंदोलन करने को मजबूर होंगे। गांव में तनाव का माहौल है और लोग प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।
सरपंच का पक्ष
पूरे मामले पर सरपंच डलेश्वरी वर्मा का कहना है कि पंचायत प्रस्ताव के अनुसार ही सभी कार्य किए जा रहे हैं और नियमों का पालन हो रहा है।
प्रशासन की चुप्पी
जब इस प्रकरण पर जनपद अधिकारियों से पक्ष जानने की कोशिश की गई, तो फोन रिसीव नहीं हुआ, जिससे प्रशासनिक उदासीनता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
खैरझिटी का यह मामला केवल एक निर्माण विवाद नहीं, बल्कि पंचायती राज व्यवस्था, प्रशासनिक आदेशों और सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग से जुड़ा गंभीर प्रश्न बनता जा रहा है। अब देखना होगा कि प्रशासन कब और कैसे हस्तक्षेप कर ग्रामीणों की आवाजाही व जल अधिकारों को सुरक्षित करता है या फिर यह चिंगारी आंदोलन का रूप ले लेगी।